श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
नवम अध्याय
‘अवजानन्ति मां[3] मूढाः’- जिसकी अध्यक्षता में प्रकृति अनन्त ब्रह्माण्डों को उत्पन्न और लीन करती है, जिसकी सत्ता-स्फूर्ति से संसार में सब कुछ हो रहा है और जिसने कृपा करके अपनी प्राप्ति के लिए मनुष्य शरीर दिया है- ऐसे मुझ सत्य-तत्त्व की मूढ़ लोग अवहेलना करते हैं। वे मेरे को न मानकर उत्पत्ति-विनाशशील पदार्थों को ही सत्य मानकर उनका संग्रह करने और भोग-भोगने में ही लगे रहते हैं- यही मेरी अवज्ञा, अवहेलना करना है। संबंध- अब भगवान आगे के श्लोक में अपनी अवज्ञा का फल बताते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ गीता 7।24-25
- ↑ गीता7:20
- ↑ इस अध्याय के चौथे श्लोक से दसवें श्लोक तक जिस परमात्मा का वर्णन हुआ है, उसी को यहाँ ‘माम्’ पद से कहा गया है।
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श्लोक संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |