श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
द्वितीय अध्याय इस श्लोक में अर्जुन ने चार बातें कहीं है-
इनमें पहली बात में अर्जुन धर्म के विषय में पूछते हैं, दूसरी बात में अपने कल्याण के लिए प्रार्थना करते हैं। तीसरी बात में शिष्य बन जाते हैं और चौथी बात में शरणागत हो जाते हैं। अब इन चारों बातों पर विचार किया जाय, तो पहली बात में मनुष्य जिससे पूछता है, वह कहने में अथवा न कहने में स्वतंत्र होता है। दूसरी में, जिससे प्रार्थना करता है, उसके लिए कहना कर्तव्य हो जाता है। तीसरी में, जिनका शिष्य बन जाता है, उन गुरु पर शिष्य को कल्याण का मार्ग बताने का विशेष दायित्व आ जाता है। चौथी में, जिसके शरणागत हो जाता है, उस शरण्य को शरणागत का उद्धार करना ही पड़ता है अर्थात उसके उद्धार का उद्योग स्वयं शरण्य को करना पड़ता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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