श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
अष्टादश अध्याय
ऐसे भक्त से अगर कोई कहे कि आधे क्षण के लिए भगवान को भूल जाने से त्रिलोकी का राज्य मिलेगा, तो वह इसे भी ठुकरा देगा। भागवत में आया है- त्रिभुवनविभवहेतवेऽप्यकुण्ठ- ‘तीनों लोकों के समस्त ऐश्वर्य के लिए भी उन देवदुर्लभ भगवच्चरणकमलों का जो आधे निमेष के लिए भी त्याग नहीं कर सकते, वे ही श्रेष्ठ भगवद्भक्त हैं।’ न पारमेष्ठय्यं न महेंद्रधिष्ण्यं भगवान कहते हैं कि ‘स्वयं को मेरे अर्पित करने वाला भक्त मुझे छोड़कर ब्रह्मा का पद, इंद्र का पद, संपूर्ण पृथ्वी का राज्य, पातालादि लोकों का राज्य, योग की समस्त सिद्धियाँ और मोक्ष को भी नहीं चाहता।’ भरत जी कहते हैं- अरथ न धरम न काम रुचि गति न चहउँ निरबान । संबंध- अब पूर्वश्लोक में कहे अत्यंत गोपनीय वचन को अनधिकारियों के सामने कहने का निषेध करते हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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