श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
अष्टादश अध्याय
‘मां नमस्कुरु’- भगवान के चरणों में साष्टांग प्रणाम करके सर्वथा भगवान के समर्पित हो जाए। मैं प्रभु के चरणों में ही पड़ा हुआ हूँ- ऐसा मन में भाव रखते हुए जो कुछ अनुकूल या प्रतिकूल परिस्थिति सामने आ जाए, उसमें भगवान मंगलमय विधान मानकर परम प्रसन्न रहे। भगवान के द्वारा मेरे लिए जो कुछ भी विधान होगा, वह मंगलमय ही होगा। पूरी परिस्थिति मेरी समझ में आए या न आए- यह बात दूसरी है, पर भगवान का विधान तो मेरे लिए कल्याणकारी ही है, इसमें कोई संदेह नहीं। अतः जो कुछ होता है, वह मेरे कर्मों का फल नहीं है, प्रत्युत भगवान के द्वारा कृपा करके केवल मेरे हित के लिए भेजा हुआ विधान है। कारण कि भगवान प्राणिमात्र के परम सुहृद होने से जो कुछ विधान करते हैं, वह जीवों के कल्याण के लिए ही करते हैं। इसलिए भगवान अनुकूल या प्रतिकूल परिस्थिति भेजकर प्राणियों के पुण्य-पापों का नाश करके, उन्हें परम शुद्ध बनाकर अपने चरणों में खींच रहे हैं- इस प्रकार दृढ़ता से भाव होना ही भगवान के चरणों में नमस्कार करना है।
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