श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
सप्तदश अध्याय
तस्मादोमित्युदाहृत्य यज्ञदानतप:क्रिया: ।
व्याख्या- ‘तस्मादोमित्युदाहृत्य.....ब्रह्मवादिनाम्’- वेदवादी के लिए अर्थात वेदों को मुख्य मानने वाला जो वैदिक संप्रदाय है, उसके लिए ‘ऊँ’ का उच्चारण करना खास बताया है। वे ‘ऊँ’ का उच्चारण करके ही वेदपाठ, यज्ञ, दान, तप आदि शास्त्रविहित क्रियाओं में प्रवृत्त होते हैं; क्योंकि जैसे गायें सांड़ के बिना फलवती नहीं होती, ऐसे ही वेद की जितनी ऋचाएँ हैं, श्रुतियाँ हैं, वे सब ‘ऊँ’ का उच्चारण किए बिना फलवती नहीं होती अर्थात फल नहीं देती। ‘ऊँ’ का सबसे पहले उच्चारण क्यों किया जाता है? कारण कि सबसे पहले ‘ऊँ’- प्रणव प्रकट हुआ है। उस प्रणव की तीन मात्राएँ हैं। उन मात्राओं से त्रिपदा गायत्री प्रकट हुई है और त्रिपदा गायत्री से ऋक्, साम और यजु- यह वेदत्रयी प्रकट हुई है। इस दृष्टि से ‘ऊँ’ सबका मूल है और इस के अंतर्गत गायत्री भी है तथा सब के सब वेद भी हैं। अतः जितनी वैदिक क्रियाएँ की जाती हैं, वे सब ‘ऊँ’ का उच्चारण करके ही की जाती हैं। |
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