श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
त्रयोदश अध्याय
इति क्षेत्रं तथा ज्ञानं ज्ञेयं चोक्तं समासतः । अर्थ- इस प्रकार क्षेत्र, ज्ञान और ज्ञेय को संक्षेप से कहा गया है। मेरा भक्त इसको तत्त्व से जानकर मेरे भाव को प्राप्त हो जाता है। व्याख्या- ‘इति क्षेत्रं तथा ज्ञानं ज्ञेयं चोक्तं समासतः’- इसी अध्याय के पाँचवें और छठे श्लोक में जिसका वर्णन किया गया है, वह ‘क्षेत्र’ है; सातवें से ग्यारहवें श्लोक तक जिस साधन-समुदाय का वर्णन किया गया है, वह ‘ज्ञान’ है; और बारहवें से सत्रहवें श्लोक तक जिसका वर्णन किया गया है, वह ‘ज्ञेय’ है। इस तरह मैंने क्षेत्र, ज्ञान और ज्ञेय का संक्षेप से वर्णन किया है। ‘मद्भक्त एतद्विज्ञाय मद्भावायोपद्यते’- मेरा भक्त क्षेत्र को, साधन-समुदाय रूप ज्ञान को और ज्ञेय तत्त्व (परमात्मा) को तत्त्व से जानकर मेरे भाव को प्राप्त हो जाता है। क्षेत्र को ठीक तरह से जान लेने पर क्षेत्र से संबंध-विच्छेद हो जाता है। ज्ञान को अर्थात साधन-समुदाय को ठीक तरह से जानने से, अपनाने से देहाभिमान (व्यक्तित्व) मिट जाता है। ज्ञेय तत्त्व को ठीक तरह से जान लेने पर उसकी प्राप्ति हो जाती है अर्थात परमात्मतत्त्व के साथ अभिन्नता का अनुभव हो जाता है। संबंध- इसी अध्याय के पहले और दूसरे श्लोक में जिस क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ का संक्षेप से वर्णन किया था, उसी का विस्तार से वर्णन करने के लिए आगे का प्रकरण आरंभ करते हैं। |
संबंधित लेख
श्लोक संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज