श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
एकादश अध्याय
ततः स विस्मयाविष्टो हृष्टरोमा धनञ्जयः । अर्थ- भगवान के विश्वरूप को देखकर अर्जुन बहुत चकित हुए और आश्चर्य के कारण उनका शरीर रोमाञ्चित हो गया। वे हाथ जोड़कर विश्वरूप देव को मस्तक से प्रणाम करके बोले। व्याख्या- ‘ततः स विस्मयाविष्टो हृष्टरोमा धनञ्जयः’- अर्जुन ने भगवान के रूप में विषय में जैसी कल्पना भी नहीं की थी, वैसा रूप देखकर उनको बड़ा आश्चर्य हुआ। भगवान ने मेरे पर कृपा करके विलक्षण आध्यात्मिक बातें अपनी ओर से बतायीं और अब कृपा करके मेरे को अपना विलक्षण रूप दिखा रहे हैं- इस बात को लेकर अर्जुन प्रसन्नता के कारण रोमाञ्चित हो उठे। ‘प्रणम्य शिरसा देवं कृताञ्जलिरभाषत’- भगवान की विलक्षण कृपा को देखकर अर्जुन का ऐसा भाव उमड़ा कि मैं इसके बदले में क्या कृतज्ञता प्रकट करूँ? मेरे पास कोई ऐसी वस्तु नहीं है, जो मैं इनके अर्पण करूँ। मैं तो केवल सिर से प्रणाम ही कर सकता हूँ अर्थात अपने-आपको अर्पित ही कर सकता हूँ। अतः अर्जुन हाथ जोड़कर और सिर झुकाकर प्रणाम करते हुए विश्वरूप भगवान की स्तुति करने लगे। संबंध- अर्जुन विराट रूप भगवान की जिस विलक्षणता को देखकर चकित हुए, उसका वर्णन आगे के तीन श्लोकों में करते हुए भगवान की स्तुति करते हैं। |
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