अष्टादश अध्याय
सम्बन्ध- अब राजस कर्ता के लक्षण बतलाते हैं-
रागी कर्मफलप्रेप्सुर्लुब्धो हिंसात्मकोऽशुचि: ।
हर्षशोकान्वित: कर्ता राजस: परकीर्तित: ।। 27 ।।
जो कर्ता आसक्ति से युक्त, कर्मों के फल को चाहने वाला और लोभी है तथा दूसरों को कष्ट देने के स्वभाव वाला, अशुद्धाचारी और हर्ष-शोक से लिप्त है- वह राजस कहा गया है।। 27 ।।
प्रश्न- ‘रागी’ पद कैसे मनुष्य का वाचक है?
उत्तर- जिस मनुष्य की कर्मों में और उनके फलरूप इस लोक और परलोक के भोगों में ममता और आसक्ति है- अर्थात् जो कुछ क्रिया करता है, उसमें और उसके फल में जो आसक्त रहता है- ऐसे मनुष्य को ‘रागी’ कहते हैं।
प्रश्न- ‘कर्मफलप्रेप्सुः’ पद कैसे मनुष्य का वाचक है?
उत्तर- जो कर्मों के फलरूप स्त्री, पुत्र, धन, मकान, मान, बड़ाई, प्रतिष्ठा आदि इस लोक और परलोक के नाना प्रकार के भोगों की इच्छा करता रहता है तथा जो कुछ कर्म करता है उन भोगों की प्राप्ति के लिये ही करता है -ऐसे स्वार्थपरायण पुरुष का वाचक ‘कर्मफलप्रेप्सुः’ पद है।
प्रश्न- ‘लुब्धः’ पद कैसे मनुष्य का वाचक है?
उत्तर- धनादि पदार्थों में आसक्ति रहने के कारण जो न्याय से प्राप्त अवसर पर भी अपनी शक्ति के अनुरूप धन का व्यय नहीं करता तथा न्याय-अन्याय का विचार न करके सदा धन संग्रह की लालसा रखता है, यहाँ तक की दूसरे के स्वत्व को हड़पने की भी इच्छा रखता है और वैसी ही चेष्टा करता है- ऐसे लोभी मनुष्य का वाचक ‘लुब्धः’ पद है।
प्रश्न- ‘हिंसात्मकः’ पद कैसे मनुष्य का वाचक है?
उत्तर- जिस किसी भी प्रकार से दूसरों को कष्ट पहुँचाना ही जिसका स्वभाव है, जो अपनी अभिलाषा की पूर्ति के लिये राग-द्वेषपूर्वक कर्म करते समय दूसरों के कष्ट की किंचिन्मात्र भी परवा न करके अपने आराम तथा भोग के लिये दूसरों को कष्ट देता रहता है- ऐसे हिंसापरायण मनुष्य का वाचक यहाँ ‘हिंसात्मकः’ पद है।
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