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प्रथम अध्याय
सम्बन्ध- पाण्डव-सेना की व्यूहरचना दिखलाकर अब दुर्योधन तीन श्लोकों द्वारा पाण्डव-सेना के प्रमुख महारथियों के नाम बतलाते हैं-
अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि।
युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथः ।। 4 ।।
धृष्टकेतुश्चेकितानः काशिराजश्च वीर्यवान्।
पुरुजित्कुन्तिभोजश्च शैब्यश्य नरपुंगवः ।। 5 ।।
युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान्।
सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथाः ।। 6 ।।
इस सेना में बड़े-बड़े धनुषों वाले तथा युद्ध में भीम और अर्जुन के समान शूरवीर सात्यकि और विराट तथा महारथी राजा द्रुपद, धृष्टकेतु और चेकितान तथा बलवान् काशिराज, पुरुजित्, कुन्तिभोज और मनुष्यों में श्रेष्ठ शैब्य, पराक्रमी युधामन्यु तथा बलवान उत्तमौजा, सुभद्रापुत्र अभिमन्यु एवं द्रौपदी के पाँचों पुत्र- ये सभी महारथी हैं।। 4-6 ।।
प्रश्न - ‘अत्र’ पद का यहाँ किस अर्थ में प्रयोग हुआ है?
उत्तर - ‘अत्र’ पद यहाँ पाण्डव-सेना के अर्थ में प्रयुक्त है।
प्रश्न - ‘युधि’ पद का अन्वय ‘अत्र’ के साथ न करके ‘भीमार्जुनसाः’ के साथ क्यों किया गया?
उत्तर - ‘युधि’ पर यहाँ ‘अत्र’ का विशेष्य नहीं बन सकता, क्योंकि उस समय युद्ध आरम्भ ही नहीं हुआ था। इसके अतिरिक्त उसके पहले पाण्डव-सेना का वर्णन होने के कारण ‘अत्र’ पद स्वभाव से ही उसका वाचक हो जाता है, इसीलिये उसके साथ किसी विशेष्य की आवश्यकता भी नहीं है। ‘भीमार्जुनसमाः’ के साथ ‘युधि’ पद का अन्वय करके यह भाव दिखलाया है। यहाँ जिन महारथियों के नाम लिये गये हैं, वे पराक्रम और युद्धविद्या में भीम और अर्जुन की समता रखते हैं।
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