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प्रथम अध्याय
सम्बन्ध- पाण्डव-सेना के प्रधान योद्धाओं के नाम बतलाकर अब दुर्योधन आचार्य द्रोण से अपनी सेना के प्रधान योद्धाओं को जान लेने के लिये अनुरोध करते हैं-
अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम।
नायका मम सैन्यस्य संज्ञार्थ तान् ब्रवीमि ते ।। 7 ।।
हे ब्राह्मण श्रेष्ठ! अपने पक्ष में भी जो प्रधान हैं, उनको आप समझ लीजिये। आपकी जानकारी के लिये मेरी सेना के जो-जो सेनापति हैं, उनको बतलाता हूँ ।।7।।
प्रश्न- ‘तु’ पद का क्या अभिप्राय है? और ‘अस्माकम्’ के साथ इसका प्रयोग करके क्या भाव दिखलाया है?
उत्तर - ‘तु’ पद यहाँ ‘भी’ के अर्थ में है; इसका ‘अस्माकम्’ के साथ प्रयोग करके दुर्योधन यह कहना चाहते हैं कि केवल पाण्डव-सेना में ही नहीं, अपने पक्ष में भी बहुत-से महान् शूरवीर हैं।
प्रश्न- ‘विशिष्टाः’ पद से किनका लक्ष्य है? और ‘निबोध’ क्रियापद का क्या भाव है?
उत्तर- दुर्योधन ने ‘विशिष्टाः’ पद का प्रयोग उनके लक्ष्य से किया है, जो उनकी सेना में सबसे यह कहना चाहते हैं कि केवल पाण्डव-सेना में ही बढ़कर वीर, धीर, बलवान्, बुद्धिमान, साहसी, पराक्रमी, तेजस्वी और शस्त्रविद्याविशारद पुरुष थे और ‘निबोध’ क्रियापद से यह सूचित किया है कि अपनी सेना में भी ऐसे सर्वोत्तम शूरवीरों की कमी नहीं है; मैं उनमें से कुछ चुने हुए वीरों के नाम आपकी विशेष जानकारी के लये बतलाता हूँ, आप मुझसे सुनिये।
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