श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
द्वितीय अध्याय
उत्तर- इससे संजय ने यह भाव दिखलाया है कि जिन अर्जुन ने पहले बड़े साहस के साथ अपने रथ को दोनों सेनाओं के बीच में खड़ा करने के लिये भगवान् से कहा था, वे ही अब दोनों सेनाओं में स्थित स्वजनसमुदाय को देखते ही मोह के कारण व्याकुल हो रहे हैं; उन्हीं अर्जुन से भगवान् कहने लगे। प्रश्न- ‘हँसते हुए-से यह वचन बोले’ इस वाक्य का क्या भाव है? उत्तर- इस वाक्य से संजय इस बात का दिग्दर्शन कराते हैं कि भगवान् ने क्या कहा और किस भाव से कहा। अभिप्राय यह है कि अर्जुन उपर्युक्त प्रकार से शूरवीरता प्रकट करने की जगह उलटा विषाद कर रहे हैं तथा मेरे शरण होकर शिक्षा देने के लिये प्रार्थना करके मेरा निर्णय सुनने के पहले ही युद्ध न करने की घोषणा भी कर देते हैं- यह इनकी कैसी गलती है!’ इस भाव से मन-ही-मन हँसते हुए भगवान् (जिनका वर्णन आगे किया जाता है, वे वचन) बोल। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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