श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
द्वादश अध्याय
अध्याय का संक्षेप- इस अध्याय के पहले श्लोक में सगुण-साकार और निर्गुण-निराकार के उपासकों में कौन श्रेष्ठ है, यह जानने के लिये अर्जुन का प्रश्न है। दूसरे में अर्जुन के प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान् ने सगुण-साकार के उपासकों को युक्ततम (श्रेष्ठ) बतलाया है। तीसरे-चौथे में निर्गुण-निराकार परमात्मा के विशेषणों का वर्णन करके उसकी उपासना का फल भी भगवत्प्राप्ति बतलाया है और पाँचवें में देहाभिमानी मनुष्यों के लिये निराकार की उपासना कठिन बतलायी है। छठे और सातवें में भगवान् ने यह बतलाया है कि सब कर्मों को मुझमें अर्पण करके अनन्यभाव से निरन्तर मुझ सगुण परमेश्वर का चिन्तन करने वाले भक्तों का उद्धार स्वयं मैं करता हूँ। आठवें में भगवान् ने अर्जुन को मन-बुद्धि अपने में अर्पण करने के लिये आज्ञा दी है और उसका फल अपनी प्राप्ति बतलाया है। तदनन्तर नवें से ग्यारहवें तक उपर्युक्त साधन न कर सकने पर अभ्यासयोग का साधन करने के लिये, उसमें भी असमर्थ होने पर भगवदर्थ कर्म करने के लिये और उसमें भी असमर्थ होने पर समस्त कर्मों का फल त्याग करने के लिये क्रमशः कहा है। बारहवें में कर्मफलत्याग को सर्वश्रेष्ठ बतलाकर उसका फल तत्काल ही शान्ति की प्राप्ति होना बतलाया है। तत्पश्चात् तेरहवें से उन्नीसवें तक भगवान् ने अपने प्रिय ज्ञानी महात्मा भक्तों के लक्षण बतलाये हैं और बीसवें में उन ज्ञानी महात्मा भक्तों के लक्षणों को आदर्श मानकर श्रद्धापूर्वक वैसा ही साधन करने वाले भक्तों को अत्यन्त प्रिय बतलाया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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