श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
पंचदश अध्याय
यदादित्यगतं तेजो जगद्भासयतेऽखिलम् ।
उत्तर- सूर्यमण्डल में जो एक महान् ज्योति है, उसका वाचक यहाँ ‘आदित्यगतम्’ विशेषण के सहित ‘तेजः’ पद है; और वह समस्त जगत् को प्रकाशित करता है, यह कहकर भगवान् ने यह भाव दिखलाया है कि स्थूल संसार की समस्त वस्तुओं को एक सूर्य का तेज ही प्रकाशित करता है। प्रश्न- चन्द्रमा में और अग्नि में स्थित तेज किसका वाचक है और उन तीनों में स्थित तेज को तू मेरा ही तेज समझ, इस कथन का क्या अभिप्राय है? उत्तर- चन्द्रमा में जो ज्योत्स्ना है, उसका वाचक चन्द्रस्थ तेज है एवं अग्नि में जो प्रकाश है, उसका वाचक अग्निस्थ तेज है। इस प्रकार सूर्य, चन्द्रमा और अग्नि में स्थित समस्त तेज को अपना तेज बतलाकर भगवान् ने यह भाव दिखलाया है कि उन तीनों में और वे जिनके देवता हैं- ऐसे नेत्र, मन और वाणी में वस्तु को प्रकाशित करने की जो कुछ भी शक्ति है- वह मेरे ही तेज का एक अंश है। जबकि इन तीनों में स्थित तेज भी मेरे ही तेज का अंश है, तब जो इन तीनों में सम्बन्ध से तेजयुक्त कहे जाने वाले अन्यान्य पदार्थ हैं- उन सबका तेज मेरा ही तेज है, इसमें तो कहना ही क्या है। इसीलिये छठे श्लोक में भगवान् ने कहा है कि सूर्य, चन्द्रमा और अग्नि- ये सब मेरे स्वरूप को प्रकाशित करने में समर्थ नहीं हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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