श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
प्रथम अध्याय
भवान् भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च समितिन्जयः।
उत्तर - द्रोणाचार्य महर्षि भरद्वाज के पुत्र थे। इन्होंने महर्षि अग्निवेश्य से और श्रीपरशुराम जी से रहस्य समेत समस्त अस्त्र-शस्त्र प्राप्त किय थे। ये वेद-वेदांग के ज्ञाता, महान् तपस्वी, धनुर्वेद तथा शस्त्रास्त्र-विद्या के अत्यन्त मर्मज्ञ और अनुभवी एवं युद्धकला में नितान्त निपुण और परमसाहसी अतिरथी वीर थे। ब्रह्मास्त्र, आग्नेयास्त्र आदि विचित्र अस्त्रों का प्रयोग करना इन्हें भली-भाँति ज्ञात था। युद्धक्षेत्र में जिस समय ये अपनी पूरी शक्ति से भिड़ जाते थे, उस समय इन्हें कोई भी जीत नहीं सकता था। इनका विवाह महर्षि शरद्वान् की कन्या कृपी से हुआ था। इन्हीं से अश्वत्थामा उत्पन्न हुए थे। राजा द्रुपद के ये बालसखा थे। एक समय इन्होंने द्रुपद के पास जाकर उन्हें प्रिय मित्र कहा, तब ऐश्वर्यमद से चूर द्रुपद ने इनका अपमान करते हुए कहा- ‘मेरे-जैसे ऐश्वर्यसम्पन्न राजा के साथ तुम-सरीखे निर्धन, दरिद्र, मनुष्य की मित्रता किसी तरह भी नहीं हो सकती।’ द्रुपद के इस तिरस्कार से इन्हें बड़ी मर्मवेदना हुई और ये हस्तिनापुर में आकर अपने साले कृपाचार्य के पास रहने लगे। वहाँ पितामह भीष्म से इनका परिचय हुआ और इन्हें कौरव-पाण्डवों की शिक्षा के लिये नियुक्त किया गया। शिक्षा समाप्त होने पर गुरुदक्षिणा रूप में इन्होंने राज द्रुपद को पकड़ लाने के लिये शिष्यों से कहा। महात्मा अर्जुन ही गुरु की इस आज्ञा का पालन कर सके और द्रुपद को रणक्षेत्र में हराकर सचिवसहित पकड़ लाये। द्रोण ने द्रुपद को बिना मारे छोड़ दिया, परंतु भागीरथी से उत्तर भाग का उनका राज्य ले लिया। महाभारत-युद्ध में इन्होंने पाँच दिन तक सेनापति के पद पर रहकर बड़ा ही घोर युद्ध किया और अन्त में अपने पुत्र अश्वत्थामा की मृत्यु का भ्रममूलक समाचार सुनकर इन्होंने शस्त्रास्त्र का परित्याग कर दिया और समाधिस्थ होकर ये भगवान् का ध्यान करने लगे। इनके प्राणत्याग करने पर इनके ज्योतिर्मय स्वरूप का ऐसा तेज फैला कि सारा आकाशमण्डल तेजराशि से परिपूर्ण हो गया। इसी अवस्था में धृष्टद्युम्न ने तीखी तलवार से इनका सिर काट डाला। यहाँ दुर्योधन ने ‘आप’ कहकर सबसे पहले इन्हें इसीलिये गिनाया कि जिसमें ये खूब प्रसन्न हो जायँ और मेरे पक्ष में अधिक उत्साह से युद्ध करें। शिक्षागुरु होने के नाते आदर के लिये भी सर्वप्रथम ‘आप’ कहकर इन्हें गिनाना युक्तिसंगत ही है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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