श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
चतुर्थ अध्याय
सम्बन्ध- उपर्युक्त वर्णन से मनुष्य को स्वाभाविक ही यह शंका हो सकती है कि भगवान् श्रीकृष्ण को अभी द्वापर युग में प्रकट हुए हैं और सूर्यदेव, मनु एवं इक्ष्वाकु बहुत पहले हो चुके हैं; तब इन्होंने इस योग का उपदेश सूर्य के प्रति कैसे दिया? अतएव इसके समाधान के साथ भगवान् के अवतार-तत्त्व को भली प्रकार समझने की इच्छा से अर्जुन पूछते हैं- अपरं भवतो जन्म परं जन्म विवस्वत: ।
उत्तर - यद्यपि अर्जुन इस बात को पहले ही से जानते थे कि श्रीकृष्ण कोई साधारण मनुष्य नहीं हैं बल्कि दिव्य मानवरूप में प्रकट सर्वशक्तिमान् पूर्णब्रह्म परमात्मा ही हैं, क्योंकि उन्होंने राजसूय यज्ञ के समय भीष्म जी से भगवान् की महिमा सुनी थी[1] और अन्य ऋषियों से भी इस विषय की बहुत बातें सुन रखीं थीं। इसी से वन में उन्होंने स्वयं भगवान् से उनके महत्त्व की चर्चा की थी।[2] इसके सिवा शिशुपाल आदि के वध करने में और अन्यान्य घटनाओं में भगवान् का अद्भुत प्रभाव भी उन्होंने प्रत्यक्ष देखा था। तथापि भगवान् के मुख से उनके अवतार का रहस्य सुनने की और सर्वसाधारण के मन में होने वाली शंकाओं को दूर कराने की इच्छा से यहाँ अर्जुन का प्रश्न है। अर्जुन के पूछने का भाव यह है कि आपका जन्म हाल में कुछ ही वर्षों पूर्व श्रीवसुदेव जी के घर हुआ है, इस बात को प्रायः सभी जानते हैं और सूर्य की उत्पत्ति सृष्टि के आदि में अदिति के गर्भ से हुई थी; ऐसी स्थिति में इसका रहस्य समझे बिना यह असम्भव-सी बात कैसे मानी जा सकती है कि आपने यह योग सृष्टि के आदि में सूर्य से कहा था। जिससे सूर्य के द्वारा इसकी परम्परा चली; अतएव कृपा करके मुझे इस रहस्य समझाकर कृतार्थ कीजिये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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