दशम अध्याय
सम्बन्ध- भगवान् के प्रभाव और विभूतियों के ज्ञान का फल अविचल भक्तियोग की प्राप्ति बतलायी गयी, अब दो श्लोकों में उस भक्तियोग की प्राप्ति का क्रम बतलाते हैं-
अहं सर्वस्य प्रभवो मत्त: सर्वं प्रवर्तते ।
इति मत्वा भजन्ते मां बुधा भावसमन्विता:।। 8 ।।
मैं वासुदेव ही सम्पूर्ण जगत की उत्पत्ति का कारण हूँ और मुझसे ही सब जगत चेष्टा करता है- इस प्रकार समझकर श्रद्धा और भक्ति से युक्त बुद्धिमान भक्तजन मुझ परमेश्वर को निरन्तर भजते हैं।। 8 ।।
प्रश्न- भगवान् को सम्पूर्ण जगत् का ‘प्रभव’ समझना क्या है?
उत्तर- सम्पूर्ण जगत् भगवान् से ही उत्पन्न है, अतः भगवान् ही समस्त जगत् के उपादान और निमित्त कारण हैं; इसलिये भगवान् ही सर्वोत्तम हैं, यह समझना भगवान् को समस्त जगत् का प्रभव समझना है।
प्रश्न- सम्पूर्ण जगत् भगवान् से ही चेष्टा करता है- यह समझना क्या है?
उत्तर- भगवान् के ही योगबल से यह सृष्टि चक्र चल रहा है; उन्हीं की शासन-शक्ति से सूर्य, चन्द्रमा, तारागण और पृथ्वी आदि नियमपूर्वक घूम रहे हैं; उन्हीं के शासन से समस्त प्राणी अपने-अपने कर्मानुसार अच्छी-बुरी योनियों में जन्म धारण करके अपने-अपने कर्मों का फल भोग रहे हैं- इस प्रकार से भगवान् को सबका नियन्ता और प्रवर्तक समझना ही ‘सम्पूर्ण जगत् भगवान् से चेष्टा करता है’ यह समझना है।
प्रश्न- ‘भावसमन्विताः’ विशेषण के सहित ‘बुधाः’ पद कैसे भक्तों का वाचक है?
उत्तर- जो भगवान् के अतिशय प्रेम से युक्त हैं, भगवान् में जिनकी अटल श्रद्धा है, जो भगवान् के गुण और प्रभाव को भलीभाँति विश्वासपूर्वक समझते हैं- भगवान् के उन बुद्धिमान भक्तों का वाचक ‘भावसमन्विताः’ विशेषण के सहित ‘बुधाः’ पद है।
प्रश्न- उपर्युक्त प्रकार से समझकर भगवान् को भजना क्या है?
उत्तर- उपर्युक्त प्रकार से भगवान् को सम्पूर्ण जगत् का कर्ता हर्ता और प्रर्वतक समझकर अगले श्लोक में कहे हुए प्रकार से अतिशय श्रद्धा ओर प्रेमपूर्वक मन, बुद्धि और समस्त इन्द्रियों द्वारा निरन्तर भगवान् का स्मरण और सेवन करना ही भगवान् को भजना है।
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