श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
प्रथम अध्याय
उत्तर - महाभारत, वनपर्व के तिरासीवें अध्याय में और शल्यपर्व के तिरपनवें अध्याय में कुरुक्षेत्र के माहात्म्य का विशेष वर्णन मिलता है; वहाँ इसे सरस्वती नदी के दक्षिणभाग और दृषद्वती नदी के उत्तर भाग के मध्य में बतलाया है। कहते हैं कि इसकी लंबाई-चौड़ाई पाँच-पाँच योजन थी। यह स्थान अंबाले से दक्षिण और दिल्ली से उत्तर की ओर है। इस समय भी कुरुक्षेत्र नामक स्थान वहीं है। इसका एक नाम समन्तपंचक भी है। शतपथब्राह्मणादि शास्त्रों में कहा है कि यहाँ अग्नि, इन्द्र, ब्रह्मा आदि देवताओं ने तप किया था; राजा कुरु ने भी यहाँ बड़ी तपस्या की थी तथा यहाँ मरने वालों को उत्तर गति प्राप्त होती है। इसके अतिरिक्त और भी कई बातें हैं, जिनके कारण उसे धर्मक्षेत्र या पुण्यक्षेत्र कहा जाता है। प्रश्न - धृतराष्ट्र ने ‘मामकाः’ पद का प्रयोग किनके लिये किया है और ‘पाण्डवाः’ का किनके लिये? और उनके साथ ‘समवेताः’ और 'युयुत्सवः’ विशेषण लगाकर जो ‘किम् अकुर्वत’ कहा है उसका क्या तात्पर्य है? उत्तर - ‘मामकाः’ पद का प्रयोग धृतराष्ट्र ने निज पक्ष के समस्त योद्धाओं सहित अपने दुर्योधनादि एक सौ एक पुत्रों के लिये किया है और ‘पाण्डवाः’ पद का युधिष्ठिर-पक्ष के सब योद्धाओं सहित युधिष्ठिरादि पाँचों भाइयों के लिये ‘समवेताः’ और ‘युयुत्सवः’ विशेषण देकर और ‘किम् अकुर्वत’ कहकर धृतराष्ट्र ने गत दस दिनों के भीषण युद्ध का पूरा विवरण जानना चाहा है कि युद्ध के लिये एकत्रित इन सब लोगों ने युद्ध का प्रारम्भ कैसे किया? कौन किससे कैसे भिड़े? और किसके द्वारा कौन, किस प्रकार और कब मारे गये? आदि। भीष्मपितामह के गिरने तक भीषण युद्ध का समाचार धृतराष्ट्र सुन ही चुके हैं, इसलिये उनके प्रश्न का यह तात्पर्य नहीं हो सकता कि उन्हें अभी युद्ध की कुछ भी खबर नहीं है और वे यह जानना चाहते हैं कि क्या धर्मक्षेत्र के प्रभाव से मेरे पुत्रों की बुद्धि सुधर गयी और उन्होंने पाण्डवों का स्वत्व देकर युद्ध नहीं किया? अथवा क्या धर्मराज युधिष्ठिर ही धर्मक्षेत्र के प्रभाव से प्रभावित होकर युद्ध से निवृत्त हो गये? या अब तक दोनों सेनाएँ खड़ी ही हैं, युद्ध हुआ ही नहीं और यदि हुआ तो उसका क्या परिणाम हुआ? इत्यादि। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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