श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
पंचम अध्याय
युक्त: कर्मफलं त्यक्त्वा शान्तिमाप्नोति नैष्ठिकीम्।
प्रश्न- आठवें श्लोक में ‘युक्त’ शब्द का अर्थ सांख्ययोगी किया गया है। फिर यहाँ उसी ‘युक्त’ शब्द का अर्थ कर्मयोगी कैसे किया गया? उत्तर- शब्द का अर्थ प्रकरण के अनुसार हुआ करता है। इसी न्याय से गीता में ‘युक्त’ शब्द का भी प्रयोग प्रसंगानुसार भिन्न-भिन्न अर्थों में हुआ है। ‘युक्त’ शब्द ‘युज्’ धातु से बनता है, जिसका अर्थ जुड़ना होता है। दूसरे अध्याय के इकसठवें श्लोक में ‘युक्त’ शब्द ‘संयमी’ के अर्थ में आया है, छठे अध्याय के आठवें श्लोक में भगवत्प्राप्त ‘तत्त्वज्ञानी’ के लिये, सत्रहवें श्लोक में आहार-विहार के साथ होने से ‘औचित्य’ के अर्थ में और अठारहवें श्लोक में ‘ध्यानयोगी’ के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है, तथा सातवें अध्याय के बाईसवें श्लोक में वही श्रद्धा के साथ होने से संयोग का वाचक माना गया है। इसी प्रकार इस अध्याय के आठवें श्लोक में वह सांख्ययोगी के अर्थ में आया है। वहाँ समस्त इन्द्रियाँ अपने-अपने अर्थों में बरत रही हैं, ऐसा समझकर अपने को कर्तापन से रहित मानने वाले तत्त्वज्ञ पुरुष को ‘युक्त’ कहा गया है; इसलिये वहाँ उसका अर्थ ‘सांख्ययोगी मानना ही ठीक है। परन्तु यहाँ ‘युक्त’ शब्द सब कर्मों के फल का त्याग करने वाले के लिये आया है, अतएव यहाँ इसका अर्थ ‘कर्मयोगी’ ही मानना होगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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