चतुर्दश अध्याय
सम्बन्ध- तेरहवें अध्याय में ‘क्षेत्र’ और ‘क्षेत्रज्ञ’ के लक्षणों का निर्देश करके उन दोनों के ज्ञान को ही ज्ञान बतलाया और उसके अनुसार क्षेत्र के स्वरूप, स्वभाव, विकार और उसके तत्त्वों की उत्पत्ति के क्रम आदि तथा क्षेत्रज्ञ के स्वरूप और उसके प्रभाव का वर्णन किया। वहाँ उन्नीसवें श्लोक से प्रकृति-पुरुष के नाम से प्रकरण आरम्भ करके गुणों को प्रकृतिजन्य बतलाया और इक्कीसवें श्लोक में यह बात भी कही कि पुरुष के बार-बार अच्छी-बुरी योनियों में जन्म होने में गुणों का संग ही हेतु है। गुणों के भिन्न-भिन्न स्वरूप क्या हैं, ये जीवात्मा को कैसे शरीर में बाँधते हैं, किस गुण के संग से किस योनि में जन्म होता है, गुणों से छूटने के उपाय क्या हैं, गुणों से छूटे हुए पुरुषों के लक्षण तथा आचरण कैसे होते हैं- ये सब बातें जानने की स्वाभाविक ही इच्छा होती है; अतएव इसी विषय का स्पष्टीकरण करने के लिए इस चौदहवें अध्याय का आरम्भ किया गया है। तेरहवें अध्याय में वर्णित ज्ञान को ही स्पष्ट करके चौदहवें अध्याय में विस्तारपूर्वक समझाना है, इसलिये पहले भगवान् दो श्लोकों में उस ज्ञान का महत्त्व बतलाकर उसके पुनः वर्णन की प्रतिज्ञा करते हैं -
श्रीभगवानुवाच
परं भूय: प्रवक्ष्यामि ज्ञानानां ज्ञानमुत्तमम् ।
यज्ज्ञात्वा मुनय: सर्वे परां सिद्धिमितो गता: ।। 1 ।।
श्रीभगवान बोले- ज्ञानों भी अति उत्तम उस परमज्ञान को मैं फिर कहूँगा, जिसको जानकर सब मुनिजन इस संसार से मुक्त होकर परम सिद्धि को प्राप्त हो गये हैं।।1।।
प्रश्न- यहाँ ‘ज्ञानानाम्’ पद किन ज्ञानों का वाचक है और उनमें से यहाँ भगवान् किस ज्ञान के वर्णन की प्रतिज्ञा करते हैं; तथा उस ज्ञान को अन्य ज्ञानों की अपेक्षा उत्तम और पर क्यों बतलाते हैं?
उत्तर- श्रुति-स्मृति-पुराणादि में विभिन्न विषयों को समझाने के लिये जो नाना प्रकार के बहुत-से उपदेश हैं, उन सभी का वाचक यहाँ ‘ज्ञानानाम्’ पद है। उनमें से प्रकृति और पुरुष के स्वरूप का विवेचन करके पुरुष के, वास्तविक स्वरूप को प्रत्यक्ष करा देने वाला जो तत्त्वज्ञान है, यहाँ भगवान् उसी ज्ञान का वर्णन करने की प्रतिज्ञा करते हैं। वह ज्ञान परमात्मा के स्वरूप को प्रत्यक्ष कराने वाला और जीवात्मा को प्रकृति के बन्धन से छुड़ाकर सदा के लिये मुक्त कर देने वाला है, इसलिये उस ज्ञान को अन्यान्य ज्ञानों की अपेक्षा उत्तम और पर (अत्यन्त उत्कृष्ठ) बतलाया गया है।
प्रश्न- यहाँ ‘भूयः’ पद के प्रयोग का क्या भाव है?
उत्तर- ‘भूयः’ पद का प्रयोग करके यह भाव दिखलाया गया है कि इस ज्ञान का निरूपण तो पहले भी किया जा चुका है, परंतु अत्यन्त ही गहन और दुर्विज्ञय होने के कारण समझ में आना कठिन है; अतः भलीभाँति समझाने के लिये प्रकारान्तर से पुनः उसी का वर्णन किया जाता है।
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