श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
सप्तदश अध्याय
ऊँ तत्सदिति निर्देशो ब्रह्मणास्त्रिविध: स्मृत: ।
उत्तर- परमात्मा के ‘ॐ’, ‘तत्’ और ‘सत्’- ये तीनो नाम वेदों में प्रधान माने गये हैं तथा यज्ञ, तप, दान आदि शुभ कर्मों से इन नामों का विशेष सम्बन्ध है। इसलिये यहाँ इन तीनों नामों का ही वर्णन किया गया है। प्रश्न- ‘तेन्’ पद से यहाँ उपर्युक्त तीनों नामों का ग्रहण है या जिस परमेश्वर के ये तीनों नाम हैं उसका? उत्तर- जिस परमात्मा के ये तीनों नाम है उसी का वाचक यहाँ ‘तेन’ पद है। प्रश्न- तीसरे अध्याय में तो यज्ञ सहित सम्पूर्ण प्रजा की उत्पत्ति प्रजापति ब्रह्मा से बतलायी गयी है[1] और यहाँ ब्राह्मण आदि की उत्पत्ति परमात्मा के द्वारा बतलायी जाती है, इसका क्या अभिप्राय है? उत्तर- प्रजापति ब्रह्मा की उत्पत्ति परमात्मा से हुई है और प्रजापति से समस्त ब्राह्मण, वेद और यज्ञादि उत्पन्न हुए हैं- इसलिए कहीं इनका परमेश्वर से उत्पन्न होना बतलाया गया है और कहीं प्रजापति से; किन्तु बात एक ही है। प्रश्न- ब्राह्मण, वेद और यज्ञ- इन तीनों से किन-किनको लेना चाहिये? तथा ‘पुरा’ पद किस समय का वाचक है? उत्तर- ‘ब्राह्मण’ शब्द ब्राह्मण आदि समस्त प्रजा का, ‘वेद’ चारों वेदों का ‘यज्ञ’ शब्द यज्ञ, तप, दान आदि समस्त शास्त्रविहित कर्तव्य-कर्मों का तथा ‘पुरा’ पद सृष्टि के आदिकाल का वाचक है। प्रश्न- परमेश्वर के उपर्युक्त तीन नामों को दिखलाकर फिर परमेश्वर से सृष्टि के आदिकाल में ब्राह्मण आदि की उत्पत्ति हुई, इस कथन का क्या अभिप्राय है? उत्तर- इससे यहाँ यह अभिप्राय समझना चाहिये कि जिस परमात्मा से समस्त कर्ता, कर्म और कर्म-विधि की उत्पत्ति हुई है, उस भगवान् के वाचक ‘ॐ’, ‘तत्’ और ‘सत्’- ये तीनों नाम हैं, अतः इनके उच्चारण आदि से उन सब के अंग-वैगुण्य की पूर्ति हो जाती है। अतएव प्रत्येक काम के आरम्भ में परमेश्वर के नामों का उच्चारण करना परम आवश्यक है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 3।10
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