श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
अष्टम अध्याय
अनन्यचेता: सततं यो मां स्मरति नित्यश: ।
उत्तर- जिसका चित्त अन्य किसी भी वस्तु में न लगकर निरन्तर अनन्य प्रेम के साथ केवल परम प्रेमी परमेश्वर में ही लगा रहता हो, उसे ‘अनन्यचेताः’ कहते हैं। प्रश्न- यहाँ ‘सततम्’ और ‘नित्यशः’ इन दो पदों के प्रयोग का क्या भाव है? उत्तर- ‘सततम्’ पद से यह दिखलाया है कि एक क्षण का भी व्यवधान न पड़कर लगातार स्मरण होता रहे और ‘नित्यशः’ पद से यह सूचित किया है कि ऐसा लगातार स्मरण आजीवन सदा-सर्वदा होता ही रहे, इसमें एक दिन का भी नागा न हो। इस प्रकार दो पदों का प्रयोग करके भगवान् ने जीवनभर नित्य-निरन्तर स्मरण के लिये कहा है। इसका यही भाव समझना चाहिये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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