श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
एकादश अध्याय
संजय उवाच
उत्तर- जो महान् यानी बड़े-से-बड़े योगेश्वर हों उनको ‘महायोगेश्वर’ तथा सब पापों और दुःखों के हरण करने वाले को ‘हरि’ कहते हैं। इन दोनों विशेषणों का प्रयोग करके संजय ने भगवान् की अद्भुत शक्ति-सामर्थ्य की ओर लक्ष्य कराते हुए धृतराष्ट्र को सावधान किया है। उनके कथन का भाव यह है कि श्रीकृष्ण कोई साधारण मनुष्य नहीं हैं, वे बड़े-से-बड़े योगेश्वर और सब पापों तथा दुःखों के नाश करने वाले साक्षात् परमेश्वर हैं। उन्होंने अर्जुन को अपना जो दिव्य विश्वरूप दिखलाया था, जिसका वर्णन करके मैं अभी आपको सुनाऊँगा, वह रूप बड़े-से-बड़े योगी भी नहीं दिखला सकते; उसे तो एकमात्र स्वयं परमेश्वर ही दिखला सकते हैं। प्रश्न- ‘रूपम्’ के साथ ‘परमम्’ और ‘ऐश्वरम्’ इन दोनों विशेषणों के प्रयोग का क्या अभिप्राय है? उत्तर- जो पदार्थ शुद्ध, श्रेष्ठ और अलौकिक हो, उसकी विशेषता का द्योतक ‘परम’ विशेषण है और जिसमें ईश्वर के गुण, प्रभाव एवं तेज दिखलायी देते हों तथा जो ईश्वर की दिव्य योगशक्ति से सम्पन्न हो, उसे ‘ऐश्वर’ कहते हैं। भगवान् ने अपना जो विराट्स्वरूप अर्जुन को दिखलाया था, वह अलौकिक, दिव्य, सर्वश्रेष्ठ और तेजोमय था, साधारण जगत् की भाँति पांच भौतिक पदार्थों से बना हुआ नहीं थाः भगवान् ने अपने परम प्रिय भक्त अर्जुन पर अनुग्रह करके आपना अद्भुत प्रभाव उसको समझाने के लिये ही अपनी अद्भुत योगशक्ति के द्वारा उस रूप को प्रकट करके दिखलाया था। इन्हीं भावों को प्रकट करने के लिये संजय ने ‘रूपम्’ पद के साथ इन दोनों विशेषणों का प्रयोग किया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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