युधिष्ठिर की महिमा कहते हुए भीष्म की पांडव अन्वेषण के विषय में सम्मति

महाभारत विराट पर्व के गोहरण पर्व के अंतर्गत अध्याय 28 में युधिष्ठिर की महिमा कहते हुए भीष्म की पांडव अन्वेषण के विषय में सम्मति का वर्णन हुआ है। यहाँ वैशम्पायन जी ने जनमेजय से युधिष्ठिर की महिमा कहते हुए भीष्म की पांडव अन्वेषण के विषय में सम्मति के वर्णन की कथा कही है।[1]

भीष्म-द्रोणाचार्य संवाद

वैशम्पायन जी कहते हैं- राजन! इसके पश्चात भरतवंशियों के पितामह, देशकाल के ज्ञाता, वेद-शास्त्रों के विद्वान, तत्त्वज्ञानी और सम्पूर्ण धर्मों को जानने वाले शान्तनुनन्दन भीष्म जी ने आचार्य द्रोण की बात पूरी होने पर कौरवों के हित के लिये आचार्य से मेल खाती हुई यह बात कौरवों से कही। उनकी वह बात धर्मज्ञ युधिष्ठिर से सम्बन्ध रखने वाली तथा धर्म से युक्त थी। वह दुष्ट पुरुषों के लिये सदा दुर्लभ और सत्पुरुषों को सदैव प्रिय लगने वाली थी। इस प्रकार भीष्म जी ने वहाँ सत्पुरुषों द्वारा प्रशंसित सम्यक वचन कहा- ‘सब विषयों के तत्त्वज्ञ तथा विप्रवर आचार्य द्रोण ने जैसा कहा है, वह ठीक है। वास्तव में पाण्डव समस्त शुभ लक्षणों से सम्पन्न, साधु-पुरुषोचित नियमों एवं व्रत के पालन में तत्पर, वेदोक्त व्रत के पालक, नाना प्रकार की श्रुतियों के ज्ञाता, बड़े-बूढ़ों के उपदेश और आदेश के पालन में संलग्न, सत्यव्रतपरायण तथा शुद्ध व्रत धारण करने वाले हैं।

वे अज्ञातवास के नियत समय को जानते हैं, इसीलिये उसका पालन कर रहे हैं। ‘पाण्डव क्षत्रिय धर्म में नित्य अनुरक्त रहकर सदा भगवान श्रीकृष्ण अनुगमन करने वाले हैं। वे उत्तम वीर पुरुष, महात्मा, महाबलवान तथा साधु पुरुषों के लिये उचित कर्तव्य का भार वहन कर रहे हैं; अतः वे कष्ट भोगने या नष्ट होने योग्य नहीं हैं।

‘पाण्डव अपने धर्म तथा उत्तम पराक्रम से सुरक्षित हैं। अतः वे नष्ट नहीं हो सकते, यह मेरा निश्चित विचार है। ‘भरतनन्दन! पाण्डवों के विषय में मेरी बुद्धि का जो निश्चय है, उसे बताता हूँ। जो उत्तम नीति से सम्पन्न हैं, उसकी उस नीति का अनुसंधान दूसरे (अनीतिपरायण) मनुष्य नहीं कर सकते।

‘पाण्डवों के सम्बन्ध में अपनी बुद्धि से भलीभाँति सोच-विचारकर मुझे जो युक्तिसंगत जान पड़ता है, वही उपाय हम यहाँ कर सकते हैं। मैं उस द्रोह के कारण नहीं, तुम्हारे भले के लिये बताता हूँ; ध्यान देकर सुनो। ‘युधिष्ठिर की जो नीति है, उसकी मेरे जैसे पुरुषों को कभी निन्दा नहीं करनी चाहिये। उसे अच्छी नीति ही कहनी चाहिये? अनीति कहना किसी प्रकार ठीक नहीं है। ‘तात! जो वृद्ध पुरुषों के अनुशासन में रहने वाला और सत्यपालक है, वह वीर पुरुष यदि यसाधु पुरुषों के समाज में कुछ कहना चाहता है, तो उसे यहाँ सर्वथा धर्म प्राप्त करने की इच्छा से यथार्थ एवं उचित बात ही करनी चाहिये। ‘अतः इस तेरहवें वर्ष में धर्मराज युधिष्ठिर के निवास के सम्बन्ध में दूसरे लोग जैसी धारणा रखते हैं, वैसा मैं नहीं मानता। ‘तात! जिस नगर या राष्ट्र में राजा युधिष्ठिर निवास करते होंगे, वहाँ के राजाओं का अकल्याण नहीं हो सकता। जहाँ राजा युधिष्ठिर होंगे, उस जनपद के लोगों को दानशील, उदार, विनयी और लज्जाशील होना चाहिये।

‘जहाँ राजा युधिष्ठिर होंगे, वहाँ के मनुष्य सदा प्रिय वचन बोलने वाले, जितेन्द्रिय, कल्याणभागी, सत्यपरायण, हृष्टपुष्ट, पवित्र और कार्यकुशल होंगे। ‘वहाँ कोई न तो दूसरे के दोष देखने वाला होगा और न ईर्ष्यालु। न किसी में अभिमान होगा और न मात्सर्य (द्वेष)। वहाँ के सब लोग स्वयं ही धर्म में तत्पर होंगे।[1]

युधिष्ठिर की महिमा का वर्णन

उस देश या जनपद में प्रचुर रूप से वेदध्वनि होती होगी, यज्ञों में पूर्णाहुतियाँ दी जाती होंगी और बड़ी-बड़ी दक्षिणाओं वाले बहुत-से यज्ञ हो रहे होंगे। ‘वहाँ मेघ सदा ठीक-ठीक वर्षा करता होगा, इसमें संशय नहीं है। वहाँ की भूमि पर खेती लहलहाती होगी और वहाँ निवास करने वाली प्रजा सर्वथा निर्भय होगी। ‘वहाँ गुणयुक्त धन्य, सरस फल, सुगन्धयुक्त माला और मांगलिक शब्दों से युक्त वाणी सुलभ होगी। ‘वहाँ जिसका स्पर्श सुखदायक हो, ऐसा शीतल एवं मन्द वायु चलती होगी। धर्म और ब्रह्म के स्वरूप का विचार पाखण्डशून्य होगा। जहाँ युधिष्ठिर होंगे, वहाँ भय का प्रवेश नहीं हो सकता। ‘उस जनपद में गौओं की अधिकता होगी और वे गौएँ कृश या दुर्बल न होकर खूब हृष्ट-पुष्ट होंगी। उनके दूध, दही और घी भी बड़े स्वादिष्ट तथा हितकारी होंगे।

‘जिस देश में राजा युधिष्ठिर होंगे, वहाँ गुणकारी पेय और सरस भोज्य पदार्थ सुलभ होंगे। ‘जहाँ राजा युधिष्ठिर होंगे, वहाँ रस, स्पर्श, गन्ध और शब्द - सभी विषय गुणकारी होंगे और मन को प्रसन्न करने वाले दृश्य देखने को मिलेंगे। ‘इस तेरहवें वर्ष में राजा युधिष्ठिर जहाँ कहीं भी होंगे, वहाँ के समस्त द्विज [2] अपने-अपने धर्मों का पालन करते होंगे और धर्म भी अपने गुण तथा प्रभाव से सम्पन्न होंगे। तात! पाण्डवों से संयुक्त देश में ये सब विशेषताएँ होंगी। वहाँ के लोग प्रसन्न, संतुष्ट, पवित्र और विकारशून्य होंगे। ‘देवता और अतिथियों की पूजा में सबका सर्वतोभावेन अनुराग होगा। सभी लोग दान को प्रिय मानेंगे, सब में भारी उत्साह होगा और सभी अपने-अपने धर्म के पालन में तत्पर होंगे। ‘जहाँ राजा युधिष्ठिर होंगे, वहाँ के लोग अशुभ को छोड़कर शुभ के अभिलाषी होंगे। यज्ञों का अनुष्ठान उनके लिये अभीष्ट कार्य होगा और वे श्रेष्ठ व्रतों को धारण करते होंगे।

‘तात! जहाँ राजा युधिष्ठिर रहते होंगे, वहाँ के लोग असत्य भाषण का त्याग करने वाले, शुभ, कल्याण एवं मंगल से युक्त, शुभ वस्तुओं की प्राप्ति के इच्छुक तथा शुभ में ही मन लगाने वाले होंगे। ‘सदा इष्टजनों कर प्रिय करना ही उनका व्रत होगा। कुन्तीपुत्र युधिष्ठिर धर्मात्मा हैं। उनमें सत्य, धैर्य, दान, परम शांति, अटल क्षमा, लज्जा, श्री, कीर्ति, उत्कृष्ट तेज, दयालुता और सरलता आदि गुण सदा रहते हैं। अतः अन्य साधारण मनुष्यों की तो बात ही क्या, द्विजाति (ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा वैश्य) भी उन्हें नहीं पहचान सकते।

‘इसलिये जहाँ ऐसे लक्षण पाये जायँ, वहीं बुद्धिमान युधिष्ठिर का यत्नपूर्वक छिपाया हुआ निवास स्थान हो सकता है; वहीं उनका कोई उत्कृष्ट आश्रय होना सम्भव है। इसके विपरीत मैं और कोई बात नहीं कह सकता। ‘कुरुनन्दन! यदि मेरी बातों पर तुम्हें विश्वास हो, तो इसी प्रकार सोच-विचारकर जो काम करने में तुम्हें अपना हित जान पड़े, उसे शीघ्र करो।’[3]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत विराट पर्व अध्याय 28 श्लोक 18-33
  2. ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य
  3. महाभारत विराट पर्व अध्याय 28 श्लोक 18-33

संबंधित लेख

महाभारत विराट पर्व में उल्लेखित कथाएँ


पांडवप्रवेश पर्व
विराटनगर में अज्ञातवास करने हेतु पांडवों की गुप्त मंत्रणा | अज्ञातवास हेतु युधिष्ठिर द्वारा अपने भावी कार्यक्रम का दिग्दर्शन | भीमसेन और अर्जुन द्वारा अज्ञातवास हेतु अपने अनुकूल कार्यों का वर्णन | नकुल, सहदेव और द्रौपदी द्वारा अज्ञातवास हेतु अपने कर्तव्यों का दिग्दर्शन | धौम्य द्वारा पांडवों को राजा के यहाँ रहने का ढंग बताना | पांडवों का श्मशान में शमी वृक्ष पर अपने अस्त्र-शस्त्र रखना | युधिष्ठिर द्वारा दुर्गा देवी की स्तुति | युधिष्ठिर का राजसभा में राजा विराट से मिलना | युधिष्ठिर का विराट के यहाँ निवास पाना | भीमसेन का विराट की सभा में प्रवेश और राजा द्वारा उनको आश्वासन | द्रौपदी का सैरन्ध्री के वेश में रानी सुदेष्णा से वार्तालाप | द्रौपदी का रानी सुदेष्णा के यहाँ निवास पाना | सहदेव की विराट के यहाँ गौशाला में नियुक्ति | अर्जुन की विराट के यहाँ नृत्य प्रशिक्षक के पद पर नियुक्ति | नकुल का विराट के अश्वों की देखरेख में नियुक्त होना
समयपालन पर्व
भीमसेन द्वारा जीमूत नामक मल्ल का वध
कीचकवध पर्व
कीचक की द्रौपदी पर आसक्ति और प्रणय निवेदन | द्रौपदी द्वारा कीचक को फटकारना | सुदेष्णा का द्रौपदी को कीचक के यहाँ भेजना | कीचक द्वारा द्रौपदी का अपमान | द्रौपदी का भीमसेन के समीप जाना | द्रौपदी का भीमसेन से अपना दु:ख प्रकट करना | द्रौपदी का भीमसेन के सम्मुख विलाप | द्रौपदी का भीमसेन से अपना दु:ख निवेदन करना | भीमसेन और द्रौपदी का संवाद | भीमसेन और कीचक का युद्ध | भीमसेन द्वारा कीचक का वध | उपकीचकों का सैरन्ध्री को बाँधकर श्मशानभूमि में ले जाना | भीमसेन द्वारा उपकीचकों का वध | द्रौपदी का विराट नगर में लौटकर आना | द्रौपदी का बृहन्नला और सुदेष्णा से वार्तालाप
गोहरण पर्व
दुर्योधन को उसके गुप्तचरों द्वारा कीचकवध का वृत्तान्त सुनाना | दुर्योधन का सभासदों से पांडवों का पता लगाने हेतु परामर्श | द्रोणाचार्य की सम्मति | युधिष्ठिर की महिमा कहते हुए भीष्म की पांडव अन्वेषण के विषय में सम्मति | कृपाचार्य की सम्मति और दुर्योधन का निश्चय | सुशर्मा का कौरवों के लिए प्रस्ताव | त्रिगर्तों और कौरवों का मत्स्यदेश पर धावा | पांडवों सहित विराट की सेना का युद्ध हेतु प्रस्थान | मत्स्य तथा त्रिगर्त देश की सेनाओं का युद्ध | सुशर्मा द्वारा विराट को बन्दी बनाना | पांडवों द्वारा विराट को सुशर्मा से छुड़ाना | युधिष्ठिर का अनुग्रह करके सुशर्मा को मुक्त करना | विराट द्वारा पांडवों का सम्मान | विराट नगर में राजा विराट की विजय घोषणा | कौरवों द्वारा विराट की गौओं का अपहरण | गोपाध्यक्ष का उत्तरकुमार को युद्ध हेतु उत्साह दिलाना | उत्तर का अपने लिए सारथि ढूँढने का प्रस्ताव | द्रौपदी द्वारा उत्तर से बृहन्नला को सारथि बनाने का सुझाव | बृहन्नला के साथ उत्तरकुमार का रणभूमि को प्रस्थान | कौरव सेना को देखकर उत्तरकुमार का भय | अर्जुन का उत्तरकुमार को आश्वासन देकर रथ पर चढ़ाना | द्रोणाचार्य द्वारा अर्जुन के अलौकिक पराक्रम की प्रशंसा | अर्जुन का उत्तर को शमीवृक्ष से अस्त्र उतारने का आदेश | उत्तर का शमीवृक्ष से पांडवों के दिव्य धनुष आदि उतारना | उत्तर का बृहन्नला से पांडवों के अस्त्र-शस्त्र के विषय में प्रश्न करना | बृहन्नला द्वारा उत्तर को पांडवों के आयुधों का परिचय कराना | अर्जुन का उत्तरकुमार को अपना और अपने भाइयों का यथार्थ परिचय देना | अर्जुन द्वारा युद्ध की तैयारी तथा अस्त्र-शस्त्रों का स्मरण | अर्जुन द्वारा उत्तरकुमार के भय का निवारण | अर्जुन को ध्वज की प्राप्ति तथा उनके द्वारा शंखनाद | द्रोणाचार्य का कौरवों से उत्पात-सूचक अपशकुनों का वर्णन | दुर्योधन द्वारा युद्ध का निश्चय | कर्ण की उक्ति | कर्ण की आत्मप्रंशसापूर्ण अहंकारोक्ति | कृपाचार्य का कर्ण को फटकारना और युद्ध हेतु अपना विचार बताना | अश्वत्थामा के उद्गार | भीष्म द्वारा सेना में शान्ति और एकता बनाये रखने की चेष्टा | द्रोणाचार्य द्वारा दुर्योधन की रक्षा के प्रयत्न | पितामह भीष्म की सम्मति | अर्जुन का दुर्योधन की सेना पर आक्रमण और गौओं को लौटा लाना | अर्जुन का कर्ण पर आक्रमण और विकर्ण की पराजय | अर्जुन द्वारा शत्रुंतप और संग्रामजित का वध | कर्ण और अर्जुन का युद्ध तथा कर्ण का पलायन | अर्जुन द्वारा कौरव सेना का संहार | उत्तर का अर्जुन के रथ को कृपाचार्य के पास लेना | अर्जुन और कृपाचार्य का युद्ध देखने के लिए देवताओं का आगमन | कृपाचार्य और अर्जुन का युद्ध | कौरव सैनिकों द्वारा कृपाचार्य को युद्ध से हटा ले जाना | अर्जुन का द्रोणाचार्य के साथ युद्ध | द्रोणाचार्य का युद्ध से पलायन | अर्जुन का अश्वत्थामा के साथ युद्ध | अर्जुन और कर्ण का संवाद | कर्ण का अर्जुन से हारकर भागना | अर्जुन का उत्तरकुमार को आश्वासन | अर्जुन से दु:शासन आदि की पराजय | अर्जुन का सब योद्धाओं और महारथियों के साथ युद्ध | अर्जुन द्वारा कौरव सेना के महारथियों की पराजय | अर्जुन और भीष्म का अद्भुत युद्ध | अर्जुन के साथ युद्ध में भीष्म का मूर्च्छित होना | अर्जुन और दुर्योधन का युद्ध | दुर्योधन का विकर्ण आदि योद्धाओं सहित रणभूमि से भागना | अर्जुन द्वारा समस्त कौरव दल की पराजय | कौरवों का स्वदेश को प्रस्थान | अर्जुन का विजयी होकर उत्तरकुमार के साथ राजधानी को प्रस्थान | विराट की उत्तरकुमार के विषय में चिन्ता | उत्तरकुमार का नगर में प्रवेश और प्रजा द्वारा उनका स्वागत | विराट द्वारा युधिष्ठिर का तिरस्कार और क्षमा-प्रार्थना | विराट का उत्तरकुमार से युद्ध का समाचार पूछना | विराट और उत्तरकुमार की विजय के विषय में बातचीत | अर्जुन का विराट को महाराज युधिष्ठिर का परिचय देना | विराट को अन्य पांडवों का परिचय प्राप्त होना | विराट का युधिष्ठिर को राज्य समर्पण और अर्जुन-उत्तरा विवाह का प्रस्ताव | अर्जुन द्वारा उत्तरा को पुत्रवधू के रूप में ग्रहण करना | अभिमन्यु और उत्तरा का विवाह | विराट पर्व श्रवण की महिमा

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः