- महाभारत विराट पर्व के गोहरण पर्व के अंतर्गत अध्याय 68 में विराट की उत्तरकुमार के विषय में चिन्ता का वर्णन हुआ है[1]-
विषय सूची
राजा विराट एवं पाण्डवों का युद्ध जीतकर लौटना
वैशम्पायन जी कहते हैं -जनमेजय! सेनाओं के स्वामी राजा विराट ने ( दक्षिण गोष्ठ की ) गौओं को जीतकर शीघ्र ही चारों पाण्डवों के साथ अत्यन्त प्रसन्नतापूर्वक नगर में प्रवेश किया। महाराज! संग्राम में त्रिगर्तों को हराकर सम्पूर्ण गौएँ वापस ले विजय लक्ष्मी से सम्पन्न महाराज विराट कुंती पुत्रों के साथ बड़ी शोभा पाने लगे। मित्रों का आनन्द बढ़ाने वाले वीरवर राजसिंहासन पर विराजमान हुए। उस समय शत्रुओं को संताप देने वाले सब शूरवीर कुंती पुत्रों के साथ राजा की सेवा के लिये उनके पास बैठे। फिर ब्राह्मणों सहित समस्त प्रजा वर्ग के लोग उपस्थित हुए। सबने सेना सहित मत्स्यराज का अभिनन्दन एवं स्वागत सत्कार किया। तदनन्तर मत्स्य देश के राजा सेनाओं के स्वामी विराट ने ब्राह्मणों तथा प्रजावर्ग के लोगों को विदा कर दिया और ( अन्तःपुर में जाकर ) उत्तर के विषय में पूछा - ‘राजकुमार उत्तर कहाँ गये हैं ?’ तब घर में रहने वाली स्त्रियों और कन्याओं ने उनसे सब बातें बतायीं -। ‘इसी प्रकार अन्तःपुर में रहने वाली स्त्रियों ने भी बताया कि कौरवों ने हमारे गोष्ठ का गोधन हर लिया है, अतः कुमार भूमिंजय अत्यन्त साहस के कारण क्रोध में भरकर अकेले ही उन गौओं को जीत लेने के लिये बृहन्नला के साथ निकले हैं। ‘सुना है, शान्तनु नन्दन भीष्म, कृपाचार्य, कर्ण, दुर्योधन, द्रोणाचार्य तथा द्रोण पुत्र अश्वत्थामा - ये छः अतिरथी वीर युद्ध के लिये आये हैं’।
विराट की उत्तरकुमार के विषय में चिन्ता
वैशम्पायन जी कहते हैं - जनमेजय! युद्ध में आगे बढ़ने वाले अपने पुत्र को बृहन्नला सारथि के साथ एक मात्र रथ की सहायता से कौरवों का सामना करने के लिये गया हुआ सुनकर राजा विराट को बड़ा संताप हुआ। उन्होंने ( अपने ) सभी प्रधान मन्त्रियों से कहा- ‘कौरव हों या दूसरे कोई राजा, जब वे सुनेंगे कि त्रिगर्त लोग युद्ध में पीठ दिखाकर भाग गये हैं, तब वे कदापि यहाँ ठहर नहीं सकेंगे। ‘अतः मेरे सैनिकों में से जो लोग त्रिगर्तों के साथ होने वाले युद्ध मे घायल नहीं हुए हों, वे सब विशाल सेना के साथ राजकुमार उत्तर की रक्षा के लिये जायँ’। तत्पश्चात उन्होंने पुत्र की रक्षा के लिये विचित्र-विचित्र आयुधों और आभूषणों से विभूषित घुड़सवारों, हाथी सवारों, रथारोहियों तथा पैदल योद्धाओं के समूहों को, जो बड़े शूरवीर थे, भेजा।
इस प्रकार सेनाओं के स्वामी मत्स्य नरेश विराट ने अपनी उस चतुरंगिणी सेना को शीघ्र आदेश दिया, ‘जाओ, शीघ्र पता लगाओ। कुमार जीवित है या नहीं। एक हिजड़ा जिसका सारथि बनकर गया है, वह मेरी समझ से तो अब जीवित नहीं होगा’।[2]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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| सहदेव की विराट के यहाँ गौशाला में नियुक्ति
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| नकुल का विराट के अश्वों की देखरेख में नियुक्त होना
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भीमसेन द्वारा जीमूत नामक मल्ल का वध
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| उपकीचकों का सैरन्ध्री को बाँधकर श्मशानभूमि में ले जाना
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| दुर्योधन का सभासदों से पांडवों का पता लगाने हेतु परामर्श
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| द्रोणाचार्य द्वारा दुर्योधन की रक्षा के प्रयत्न
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| अर्जुन द्वारा कौरव सेना का संहार
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| द्रोणाचार्य का युद्ध से पलायन
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| अर्जुन द्वारा कौरव सेना के महारथियों की पराजय
| अर्जुन और भीष्म का अद्भुत युद्ध
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