- महाभारत विराट पर्व के गोहरण पर्व के अंतर्गत अध्याय 25 में दुर्योधन को उसके गुप्तचरों द्वारा कीचकवध के वृत्तान्त सुनाने का वर्णन हुआ है। यहाँ वैशम्पायन जी ने जनमेजय से दुर्योधन को उसके गुप्तचरों द्वारा कीचकवध के वृत्तान्त सुनाने की कथा कही है।[1]
विषय सूची
दुर्योधन की गुप्तचरों से भेंट
वैशम्पायन जी कहते हैं- राजन! कीचक के मारे जाने पर शत्रुवीरों का वध करने वाले राजा विराट पुरोहित और मन्त्रियों सहित बहुत दुखी हुए। नरेश्वर! भाइयों सहित कीचक का वध होने से सब लोग इसको बड़ी भारी दुर्घटना या दुःसाहस का काम मानकर अलग-अलग आश्चर्य में पड़े रहे। उस नगर तथा राष्ट्र में झुंड के झुंड मनुष्य एकत्र हो जाते और उनमें इस तरह की बातें होने लगती थीं- ‘महाबली कीचक अपनी शूरवीरता के कारण राजा विराट को बहुत प्रिय था। ‘उसने विपक्षी दलों की बहुत-सी सेनाओं का संहार किया था, किंतु उसकी बुद्धि बड़ी खोटी थी। वह परायी स्त्रियों पर बलात्कार करने वाला पापात्मा और दुष्ट था; इसीलिये गन्धर्वों द्वारा मारा गया। महाराज जनमेजय! शत्रुओं की सेना का संहार करने वाले दुर्धर्ष वीर कीचक के बारे में देश-विदेश के लोग ऐसी ही बातें किया करते थे। इधर अज्ञातवास की अवस्था में पाण्डवों का पता लगाने के लिये दुर्योधन ने जो बाहर के देशों में घूमने वाले गुप्तचर लगा रक्खे थे, वे अनेक ग्राम, राष्ट्र और नगरों में उन्हें ढूंढकर, जैसा वे देख सकते थे पता लगा सकते थे अथवा जिन जिन देशों में छान-बीन कर सकते थे, उन सबमें उसी प्रकार देखभाल करके अपना काम पूरा करके पुनः हस्तिनापुर में लौट आये। वहाँ वे धृतराष्ट्र कुरुनन्दन दुर्योधन से मिले, जो द्रोण, कर्ण, कृपाचार्य, महात्मा भीष्म अपने सम्पूर्ण भाई तथा महारथी त्रिगर्तों के साथ राजसभा में बैठा था। उससे मिलकर उन गुप्तचरों ने यों कहा।
गुप्तचर बोले- नरेन्द्र! हमने उस विशाल वन में पाण्डवों की खोज के लिये महान प्रयत्न जारी रक्खा है। मृगों से भरे हुए निर्जन वन में, जो अनेकानेक वृक्षों और लताओं से व्याप्त, विविध लताओं की बहुलता एवं विसतार से विलसित तथा नाना गुल्मों से समावृत है, घूमकर वहाँ के विभिन्न स्थानों में अनेक प्रकार से उनके पद चिह्न हम ढूंढते रहे हैं तथापि वे सुदृढ़ पराक्रमी कुन्तीकुमार किस मार्ग से कहाँ गये? यह नहीं जान सके। महाराज! हमने पर्वतों के ऊँचे-ऊँचे शिखरों पर, भिन्न-भिन्न देशों में, जनसमूह से भसरे हुए स्थानों में तथा तराई के गाँवों, बाजारों और नगरों में भी उनकी बहुत खोज की, परंतु कहीं भी पाण्डवों का पता नहीं लगा।
दुर्योधन द्वारा कीचक वध का वृत्तान्त सुनाना
नरश्रेष्ठ! आपका कल्याण हो। सम्भव है, वे सर्वथा नष्ट हो गये हों। रथियों में श्रेष्ठ नरोत्तम! हमने रथियों के मार्ग पर भी उनका अन्वेषण किया है, किंतु वे कहाँ गये और कहाँ रहते हैं? इसका पता हमें नहीं लगा। मानवेन्द्र! कुछ काल तक हम लोग सारथियों के पीछे लगे रहे और अच्छी तरह खोज करके हमने एक यथार्थ बात का ठीक-ठीक पता लगा लिया है।[1]
शत्रुओं को संताप देने वाले राजेश्वर! पाण्डवों के इन्द्रसेन आदि सारथि उनके बिना ही द्वारका पहुँच गये हैं वहाँ न तो द्रौपदी है और न महान व्रतधारी पाण्डव ही हैं। जान पड़ता है; वे बिल्कुल नष्ट हो गये। भरेतश्रेष्ठ! आपको नमस्कार है। हम महात्मा पाण्डवों के मार्ग, निवास-स्थान, प्रवृत्ति अथवा उनके द्वारा किये गये कार्य के विषय में कुछ भी जानकारी प्राप्त नहीं कर सके। प्रजापालक नरेश! इसके बाद हमारे लिये क्या आज्ञा है? बताइये, पाण्डवों को ढूंढने के लिये हम पुनः क्या करें?
वीर! हमारी एक बात और सुनिये? यह आपको प्रिय लगेगी। इसमें आपके लिये मंगलजनक समाचार है। राजन! मत्स्यराज विराट के जिस महाबली सेनापति सूतपुत्र कीचक ने बहुत बड़ी सेना के द्वारा त्रिगर्त देश और वहाँ के निवासियों को तहस-नहस कर दिया था, भारत! गन्धर्वों ने उस दुष्टात्मा को उसके सहोदर भाइयों सहित रात्रि में गुप्तरूप से मार डाला है। अब वह श्मशान भूमि में पड़ा सो रहा है।
उदारचित कीचक राजा विराट का साला और सेनापति था। रानी सुदेष्णा का वह बड़ा भाई लगता था। कीचक शूरवीर, व्यथारहित, उत्साही, महापराक्रमी, नीतिमान, बलवान, युद्ध की कला को जानने वाला, शत्रुवीरों का संहार करने में समर्थ, सिंह के समान पराक्रम सम्पन्न, प्रजारक्षण में कुशल, शत्रुओं को काबू में लाने की शक्ति रखने वाला, बड़े-बड़े युद्धों में बैरियों पर विजय पाने वाला, अत्यन्त क्रोधी, अमानी, नर-नारियों के मन को आह्लादित करने वाला, रणप्रिय धीर और बोलने में चतुर था।
नरेश्वर! वह अमर्षशील दुष्टात्मा कीचक एक स्त्री के कारण गन्धर्वों द्वारा आधी रात में अपने भाइयों सहित मार डाला गया है। उसके प्रिय सुहृद और श्रेष्ठ सैनिक भी मारे गये हैं। कुरुनन्दन! शत्रुओं के पराभाव का प्रिय संवाद सुनकर आप कृतकृत्य हों और इसके बाद जो कुछ करना हो, वह करें।[2]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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पांडवप्रवेश पर्व
विराटनगर में अज्ञातवास करने हेतु पांडवों की गुप्त मंत्रणा
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| अर्जुन की विराट के यहाँ नृत्य प्रशिक्षक के पद पर नियुक्ति
| नकुल का विराट के अश्वों की देखरेख में नियुक्त होना
समयपालन पर्व
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कीचकवध पर्व
कीचक की द्रौपदी पर आसक्ति और प्रणय निवेदन
| द्रौपदी द्वारा कीचक को फटकारना
| सुदेष्णा का द्रौपदी को कीचक के यहाँ भेजना
| कीचक द्वारा द्रौपदी का अपमान
| द्रौपदी का भीमसेन के समीप जाना
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| भीमसेन और कीचक का युद्ध
| भीमसेन द्वारा कीचक का वध
| उपकीचकों का सैरन्ध्री को बाँधकर श्मशानभूमि में ले जाना
| भीमसेन द्वारा उपकीचकों का वध
| द्रौपदी का विराट नगर में लौटकर आना
| द्रौपदी का बृहन्नला और सुदेष्णा से वार्तालाप
गोहरण पर्व
दुर्योधन को उसके गुप्तचरों द्वारा कीचकवध का वृत्तान्त सुनाना
| दुर्योधन का सभासदों से पांडवों का पता लगाने हेतु परामर्श
| द्रोणाचार्य की सम्मति
| युधिष्ठिर की महिमा कहते हुए भीष्म की पांडव अन्वेषण के विषय में सम्मति
| कृपाचार्य की सम्मति और दुर्योधन का निश्चय
| सुशर्मा का कौरवों के लिए प्रस्ताव
| त्रिगर्तों और कौरवों का मत्स्यदेश पर धावा
| पांडवों सहित विराट की सेना का युद्ध हेतु प्रस्थान
| मत्स्य तथा त्रिगर्त देश की सेनाओं का युद्ध
| सुशर्मा द्वारा विराट को बन्दी बनाना
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| युधिष्ठिर का अनुग्रह करके सुशर्मा को मुक्त करना
| विराट द्वारा पांडवों का सम्मान
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| द्रौपदी द्वारा उत्तर से बृहन्नला को सारथि बनाने का सुझाव
| बृहन्नला के साथ उत्तरकुमार का रणभूमि को प्रस्थान
| कौरव सेना को देखकर उत्तरकुमार का भय
| अर्जुन का उत्तरकुमार को आश्वासन देकर रथ पर चढ़ाना
| द्रोणाचार्य द्वारा अर्जुन के अलौकिक पराक्रम की प्रशंसा
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| द्रोणाचार्य का कौरवों से उत्पात-सूचक अपशकुनों का वर्णन
| दुर्योधन द्वारा युद्ध का निश्चय
| कर्ण की उक्ति
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| कृपाचार्य का कर्ण को फटकारना और युद्ध हेतु अपना विचार बताना
| अश्वत्थामा के उद्गार
| भीष्म द्वारा सेना में शान्ति और एकता बनाये रखने की चेष्टा
| द्रोणाचार्य द्वारा दुर्योधन की रक्षा के प्रयत्न
| पितामह भीष्म की सम्मति
| अर्जुन का दुर्योधन की सेना पर आक्रमण और गौओं को लौटा लाना
| अर्जुन का कर्ण पर आक्रमण और विकर्ण की पराजय
| अर्जुन द्वारा शत्रुंतप और संग्रामजित का वध
| कर्ण और अर्जुन का युद्ध तथा कर्ण का पलायन
| अर्जुन द्वारा कौरव सेना का संहार
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| द्रोणाचार्य का युद्ध से पलायन
| अर्जुन का अश्वत्थामा के साथ युद्ध
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| कर्ण का अर्जुन से हारकर भागना
| अर्जुन का उत्तरकुमार को आश्वासन
| अर्जुन से दु:शासन आदि की पराजय
| अर्जुन का सब योद्धाओं और महारथियों के साथ युद्ध
| अर्जुन द्वारा कौरव सेना के महारथियों की पराजय
| अर्जुन और भीष्म का अद्भुत युद्ध
| अर्जुन के साथ युद्ध में भीष्म का मूर्च्छित होना
| अर्जुन और दुर्योधन का युद्ध
| दुर्योधन का विकर्ण आदि योद्धाओं सहित रणभूमि से भागना
| अर्जुन द्वारा समस्त कौरव दल की पराजय
| कौरवों का स्वदेश को प्रस्थान
| अर्जुन का विजयी होकर उत्तरकुमार के साथ राजधानी को प्रस्थान
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| विराट और उत्तरकुमार की विजय के विषय में बातचीत
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