- महाभारत विराट पर्व के गोहरण पर्व के अंतर्गत अध्याय 46 में द्रोणाचार्य का कौरवों से उत्पात-सूचक अपशकुनों का वर्णन हुआ है। यहाँ वैशम्पायन जी ने जनमेजय से द्रोणाचार्य का कौरवों से उत्पात-सूचक अपशकुनों की कथा कही है।[1]
विषय सूची
द्रोणाचार्य कथन
तदनन्तर अर्जुन ने उत्तर को पुनः धीरज बँधाया।[2] द्रोणाचार्य ने कहा- जैसी यह रथ की घर्घराहट सुनायी दे रही है, जिस तरह उससे मेघ गर्जना का सा शब्द हो रहा है और उसी के कारण जिस प्रकार यह पृथ्वी काँपने लगी है, इनसे यह सूचित होता है कि यह आने वाला योद्धा अर्जुन के सिवा दूसरा कोई नहीं है।[1]
द्रोणाचार्य द्वारा कौरवों से अपशकुनों का वर्णन
अब हमारे शस्त्र चमक नहीं रहे हैं, घोड़े प्रसन्न नहीं जान पड़ते और अग्निहोत्र की अग्नियाँ भी प्रज्वलित एवं उद्दीप्त नहीं हो रही हैं। यह सब अशुभ की सूचना है। हमारे सभी पशु सूर्य की ओर दृष्टि करके भयंकर क्रन्दन करते हैं और रथों की ध्वजाओं में कौए छिप रहे हैं। यह भी शुभ सूचक नहीं है। ये पक्षी भी हमारे वाम भाग में उड़कर महान भय की सूचना दे रहे हैं। और यह गीदड़ बिना किसी आघात के हमारी सेना के बीच से निकलकर रोता हुआ भाग रहा है, यह भी महान भय का विज्ञापन कर रहा है। कौरवों! मैं देखता हूँ, तुम्हारे रोंगटे खड़े हो गये हैं; अतः निश्चय ही, इस युद्ध के द्वारा क्षत्रियों का विनाश निकट दिखायी देता है। सूर्य आदि का प्रकाश मंद पड़ गया है।
भयंकर मृग और पक्षी सामने आ रहे हैं और क्षत्रियों के संहार की सूचना देने वाले अनेक प्रकार के घोर उत्पात दिखायी देते हैं। राजा दुर्योधन! विशेषतः यहीं हमारे लिये विनाश सूचक अपशकुन हो रहे हैं। तुम्हारी सेना के ऊपर जलती हुई उल्काएँ गिर गिरकर उसे पीड़ा देती हैं। तुम्हारे वाहन[3]अप्रसन्न तथा रोते से दीखते हैं। सेना के चारो ओर गीध बैठे हैं, इससे जान पड़ता है, तुम अपनी सेना को अर्जुन के बाणों से पीड़ित होती देख मन में संताप करोगे। तुम्हारी सेना अभी से तिरस्कृत सी हो रही है, कोई भी सैनिक युद्ध करना नहीं चाहता है। समस्त सैनिकों के मुख पर भारी उदासी छा गयी है। सब अचेत- हतोत्साह हो रहे हैं। अतः हम गौओं को हस्तिनापुर की ओर भेजकर सेना की व्यूह रचना करके शत्रु पर प्रहार करने के लिये उद्यत हो जायँ।[4]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 महाभारत विराट पर्व अध्याय 46 श्लोक 12-24
- ↑ यह शंख ध्वनि सुनकर कौरव सेना में
- ↑ हाथी-घोड़े
- ↑ महाभारत विराट पर्व अध्याय 46 श्लोक 25-33
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