- महाभारत विराट पर्व के गोहरण पर्व के अंतर्गत अध्याय 60 में कर्ण का अर्जुन से हारकर भागने का वर्णन हुआ है। यहाँ वैशम्पायन जी ने जनमेजय से कर्ण का अर्जुन से हारकर भागने की कथा कही है।[1]
विषय सूची
अर्जुन द्वारा कर्ण पर बाणों की बर्षा
वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! अर्जुन किसी से भी परास्त होने वाले नहीं थे। वे कर्ण से उपर्युक्त बातें कहकर कवच को भी विदीर्ण कर देने वाले बाण छोड़ते हुए उसकी ओर बढ़े। महारथी कर्ण ने बड़ी प्रसन्नता के साथ मेघ के सदृश बाणों की वृष्टि करने वाले अर्जुन को अपने सायकों की भारी बौछार करके रोका। फिर तो आकाश में सब ओर भयंकर बाणों के समूह उड़ने लगे। अर्जुन से यह सहन न हो सका; अतः उन्होंने झुकी हुई गाँठ एवं तीखी नोक वाले बाण के घोड़ों को बींध डाला। भुजाओं में भी गहरी चोट पहुँचायी और हाथों के दस्तानों को भी पृथक-पृथक विदीर्ण कर दिया।
कर्ण का अर्जुन से हारकर भागना
इतना ही नहीं, कर्ण के भाथा लटकाने की रस्सी को भी काट गिराया। तब कर्ण ने (अलग रक्खे हुए) छोटे तरकस से दूसरे बाण लेकर पाण्डु नन्दन अर्जुन के हाथ में चोट पहुँचायी। इससे उनकी मुट्ठी ढीली पड़ गयी। तब महाबाहु पार्थ ने कर्ण का धनुष काट दिया। यह देख कर्ण ने अर्जुन पर शक्ति चलायी; किंतु पार्थ ने उसे बाणों से नष्ट कर दिया। इतने में ही राधा पुत्र कर्ण के बहुत से सैनिक वहाँ आ पहुँचे; किंतु अर्जुन ने गाण्डीव द्वारा छोड़े हुए बाणों से मारकर उन सबको यमलोक भेज दिया। तत्पश्चात् बीभत्सु ने भार (शत्रुओं के आघात) सहने में समर्थ तीखे बाणों द्वारा, जो धनुष को कान तक खींचकर छोड़े गये थे, कर्ण के घोड़ों को घायल कर दिया। वे घोड़े मरकर पृथ्वी पर गिर पड़े। तत्पश्चात् पराक्रमी कुन्ती कुमार ने महान तेजस्वी तथा अग्नि के समान प्रज्वलित दूसरे बाण द्वारा कर्ण की छाती में आघात किया। वह बाण कर्ण का कवच काटकर उसके वक्षःस्थल के भीतर घुस गया। इससे कर्ण को मूर्च्छा आ गयी और उसे किसी भी बात की सुध न रही। कर्ण को उस चोट से बड़ी भारी वेदना हुई और वह युद्ध भूमि को छोड़कर उत्तर दिशा की ओर भागा। यह देख अर्जुन और उत्तर दोनों महारथी जोर जोर से सिंहनाद करने लगे।[1]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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