बृहन्नला द्वारा उत्तर को पांडवों के आयुधों का परिचय कराना

महाभारत विराट पर्व के गोहरण पर्व के अंतर्गत अध्याय 43 में बृहन्नला द्वारा उत्तर को पांडवों के आयुधों के परिचय का वर्णन हुआ है। यहाँ वैशम्पायन जी ने जनमेजय से बृहन्नला द्वारा उत्तर को पांडवों के आयुधों के परिचय की कथा कही है।[1]

बृहन्नला-उत्तर परिचय

बृहन्नला बोली - राजकुमार! तुमने पहले जिसके विषय में मुझसे प्रश्न किया है, वही यह अर्जुन का विश्व विख्यात गाण्डीव धनुष है, जो शत्रुओं की सेना के लिये काल रूप है। यह सब आयुधों में विशाल है। इसमें सब ओर सोना मढ़ा है। यही उत्तम आयुध गाण्डीव अर्जुन के पास रहा करता था। यह बकेला ही एक लाख धनुषों की बराबरी करने वाला तथा अपने राष्ट्र को बढ़ाने वाला है। पृथा पुत्र अर्जुन इसी के द्वारा युद्ध में मनुष्यों तथा देवताओं पर विजय पाते आ रहे हैं। हलके-गहरे अनेक प्रकार के रंगों से इसकी विचित्र शोभा होती है। यह चिकना, चमकदार और विस्तृत है। इसमें कहीं कोई चोट का चिह्न नहीं आया है। देवताओं, दानवों तथा गन्धर्वों ने इसका बहुत वर्षों तक पूजन किया है। पूर्वकाल में ब्रह्मा जी ने इसे एक हजार वर्षों तक धारण किया था। तदनन्तर प्रजापति ने पाँच सौ तीन वर्षों तक रक्खा। इन्द्र के बाद सोन ने तथा राजा वरुण ने सौ वर्षों तक इसे धारण किया। तत्पश्चात् श्वेतवाहन अर्जुन पैंसठ वर्षों से इसे धारण करते चले आ रहे हैं। यह सर्वोत्तम धनुष देखने में बड़ा ही मनोहर है। इसके द्वारा महान पराक्रम प्रकट होता है। अर्जुन को यह महादिव्य धनुष साक्षात वरुण देव से प्राप्त हुआ था।

बृहन्नला द्वारा पांडवों के आयुधों का परिचय कराना

तथा दूसरा देवताओं और मनुष्यों में पूजित उत्कृष्ट रूप धारण करने वाला धनुष भीमसेन का है, जिसके दोनों किनारे बड़े सुन्दर हैं और मध्य भाग में सोना मढ़ा हुआ है। यह वही धनुष है, जिससे शत्रुओं को संताप देने वाले कुन्तीकुमार भीमसेन ने सम्पूर्ण प्राची दिशा पर पिजय पायी थी। उत्तर! जिसके ऊपर इन्द्रगोप[2]नामक कीटों का चित्र है और जो देखने में मनोहर है, वही यह उत्तम धनुष राजा युधिष्ठिर का है। जिसमें सुवर्ण के बने हुए प्रकाश पूर्ण सूर्य प्रकाशित हो रहे हैं और जो तेज से जाज्वल्यमान जान पड़ते हैं, वही यह नकुल का आयुध है। जिसके ऊपर सुवर्ण जटित मीने के फतिंगे सुशोभित हैं, वही यह माद्री नन्दन सहदेव का धनुष है। विराट पुत्र! ये जो छुरे के समान मजबूत और चमकीले बाण हैं, जिनमें पंख लगे हुए हैं और जो साँपों के विष के समान प्रभाव रखते हैं, ये सब अर्जुन के ही हैं। ये युद्ध में तेज से प्रकाशित होकर बड़ी तेजी से शत्रु पर आघात करते हैं। रण में शत्रुओं पर बाण वर्षा करने वाले वीर के लिये इन बाणों का काटना असम्भव है।[1]

ये जो मोटे, विशाल और अर्धचन्द्राकार दिखायी देते हैं; वे भीमसेन के तीखे बाण हैें, जो शत्रुओं का संहार कर डालते हैं। ये हल्दी के समान रंग वाले और सुनहरी पाँखों से सुशोभित हैं। इन्हें पत्थर पर रगड़कर तेज किया गया है। जिस पर पाँच सिंहों के चिह्न हैं, वही यह नकुल का ‘कलप’ ( तरकस ) है, जिससे उन्होंने युद्ध में सम्पूर्ण पश्चिम दिशा पर विजय पायी थी। उस समय बुद्धिमान माद्री पुत्र नकुल के पास यही कलप था। और ये जो सूर्य के समान आकृति वाले चमकीले बाण हैं, उनके द्वारा सम्पूर्ण शत्रु समूहों का विनाश होता है। विचित्र क्रिया याक्ति से सम्पन्न ये सभी बाण बुद्धिमान सहदेव के हैं। ये जो तीखे, पानीदार, मोटे और बड़ी-बड़ी पाँखों वाले तीन पर्वों के बाण हैं और जिनकी पाँखें सोने की बनी हुई हैं; ये राजा युधिष्ठिर के महान शर हैं।

जिसके पृष्ठ भाग में मेढकी का चित्र है और जिसका मुख भाग भी मेढकी के मुख के समान ही बना हुआ है, यह विशाल खड्ग अर्जुन का है। यह युद्ध भूमि में भारी आघात को सह सकने में समथ और मजबूत है। जिसकी म्यान व्याघ्र की बनी हुई है, वह महान खड्ग भीमसेन का है। यह भी गुरुतर भार वहन करने वाला, दिव्य एवं शत्रुओं के लिये भयंकर है। जिसकी धार सुन्दर एवं पतली है, जिसकी म्यान विचित्र और मूठ सोने की है, वह तीस अंगुल से बड़ा सर्वोत्तम खड्ग परम बुद्धिमान कुरु नन्दन धर्मराज का है। जो बकरे के चमड़े की बनी हुई म्यानें हैं तथा न्पना प्रकार के युद्ध में शस्त्रों का भारी आघात सहन करने में समर्थ और मजबूत हैं, वही यह नकुल का खड्ग है। और यह जो गोचर्म की म्यान में रक्खा गया है, यह सहदेव का विशाल खड्ग है। इसे सब प्रकार के आघात - प्रत्याघात सहने में समर्थ और सुदृढ़ जानो।[3]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत विराट पर्व अध्याय 43 श्लोक 1-13
  2. बीर बहूटी
  3. महाभारत विराट पर्व अध्याय 43 श्लोक 14-23

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