द्रौपदी द्वारा उत्तर से बृहन्नला को सारथि बनाने का सुझाव

महाभारत विराट पर्व के गोहरण पर्व के अंतर्गत अध्याय 36 में द्रौपदी द्वारा उत्तर से बृहन्नला को सारथि बनाने का सुझाव का वर्णन हुआ है[1]-

पाण्डवों की अज्ञातवास की अवधि पूरी होना

वैशम्पायन जी कहते हैं- राजन! इस प्रकार बालते हुए राजकुमार उत्तर की वह बात सुनकर सब बातों में कुशल अर्जुन बहुत प्रसन्न हुए। उस समय तक उनके अज्ञातवास की अवधि पूरी हो गयी थी।

अर्जुन का संवाद

अतः अर्जुन अपनी सती-साध्वी प्यारी पत्नी पाञ्चालराजकुमारी द्रौपदी को, जिसका अग्नि से प्रादुर्भाव हुआ था और जो तन्वंगी, सत्य-सरलता आदि सद्गुणों से विभूषित तथा पति के प्रिय एवं हित में तत्पर रहने वाली थी, एकान्त में बुलाकर कहा- ‘कल्याणि! तुम मेरी बात मानकर राजकुमार उत्तर से इस प्रकार कहो- ‘यह बृहननला पाण्डुनन्दन अर्जुन का सारथि रह चका है। उसने बड़े-बड़े युद्धों में सफलता प्राप्त की है। चह तुम्हारा सारथि हो जायगा’।

उत्तर का डींग मारना

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! उत्तर स्त्रियों के बीच में बैठा था और बार-बार अपनी तुलना में अर्जुन का नाम लेकर डींग मार रहा था।

द्रौपदी का संवाद

पाञ्चालराजकुमारी द्रौपदी से यह सहन न हो सका। वह तपस्विनी स्त्रियों के बीच से उठकर उत्तर के समीप आयी और लजाती हुई सी धीरे -धीरे इस प्रकार बोली- ‘राजकुमार! यह जो विशाल गजराज के समान हृष्ट-पुष्ट, तरुण, सुंदर और देखने में अत्यनत प्रिय ‘बृहन्नला’ नाम से विख्यात नर्तक है, पहले कुन्तीपुत्र अर्जुन का सारथि था। ‘वीर! यह उन्हीं महात्मा का शिष्य है, अतः धनुर्विद्या मे भी उनसे कम नहीं है। पहले पाण्डवों के यहाँ रहते समय मैंने इसे देखा है।’ ‘जिन दिनों अर्जुन की सहायता से अग्निदेव ने दावानल रूप हो महान् खाण्डववन को जलाया था, उस समय इसी ने अर्जुन के श्रेष्ठ घोड़ों की बागडोर सँभाली थी। ‘इसी सारथि के सहयोग से कुंतीपुत्र अर्जुन ने खाण्डववन मे सम्पूर्ण प्राणियों पर विजय पायी थी; अतः इसके समान दूसरा कोई सारथि नहीं है’।

उत्तर ने कहा- सैरन्ध्री! वह युवक ऐसे गुणों से विभूषित है कि वह नपुंसक नहीं हो सकता; इन बातों को तुम अचछी तरह जानती हो;[2]शुभे! में स्वयं बृहन्नला से नहीं कह सकता कि तुम मेरे घोड़ों की रास सँभालो।

द्रौपदी द्वारा उत्तर से बृहन्नला को सारथि बनाने का सुझाव

द्रौपदी न कहा- वीर! यह जो सुन्दर कटिप्रदेश वाली तुम्हारी छोटी बहन उत्तरा है। इसकी बात वह अवश्य मान लेगा, इसमे संशय नहीं है। यदि वह सारथि हो जाय, तो निःसंदेह सम्पूर्ण कौरवों को जीतकर और गौओं को भी वापस लकर तुम्हारा इस नगर में आगमन हो सकता हे, यह ध्रुव सत्य है।

सैरन्ध्री के ऐसा कहने पर उत्तर अपनी बहिन से बोला- ‘निर्दोष अंगों वाली उत्तरे! जाओ, उस बृहन्नले को बुला कर ले आओ’। भाई के भेजने पर कुमारी उत्तरा शीघ्र नृत्यशाला में गयी जहाँ पाण्डुनन्दन महाबाहु अर्जुन कपट वेष में छिपकर रहते थे।[3]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत विराट पर्व अध्याय 36 श्लोक 1-17
  2. अतः तुम उससे कह दो, तो ठीक है।
  3. महाभारत विराट पर्व अध्याय 36 श्लोक 18-24

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