पांडवों द्वारा विराट को सुशर्मा से छुड़ाना

महाभारत विराट पर्व के गोहरण पर्व के अंतर्गत अध्याय 33 में पांडवों द्वारा विराट को सुशर्मा से छुड़ाने का वर्णन हुआ है[1]-

युधिष्ठिर द्वारा भीमसेन को आज्ञा देना

वैशम्पायन जी कहते हैं- भारत! उनके इस प्रकार अत्यन्त भयभीत होने पर कुन्तीपुत्र युधिष्ठिर ने शत्रुओं का दमन करने वाले [[भीमसेन|महाबाहु भीमसेन] से कहा- महाबाहो! त्रिगर्तराज सुशर्मा ने मत्स्यराज को पकड़ लिया है। उन्हे शीघ्र छुड़ाओ; जिससे वे शत्रुओं के वश में न पड़ जायँ। ‘हम सब लोग उनके यहाँ सुखपूर्वक रहे हैं और उन्होंने हमें सब प्रकार की अभीष्ट वस्तुएँ देकर हमारा भली-भाँति सतकार किया है। अतःभीमसेन! तुम्हें उनके घर में रहने के उपकार का बदला चुकाना चाहिये’।

भीमसेन बोले- महाराज! आपकी आज्ञा से मैं इन्हें सुशर्मा के हाथों से छुड़ा लूँगा। आज आप शत्रुओं के साथ युद्ध करते समय मेरे महान पराक्रम को देखें। मैं अपने बाहुबल का भरोसा करके लड़ूँगा। राजन! आज आप भाइयों सहित एकान्त में खड़े होकर अब मेरा पराक्रम देखें। यह सामने जो महान वृक्ष है, इसकी शाखाएँ बड़ी सुन्दर हैं। यह तो मानो गदा के ही रूप में खड़ा है। अतः मैं इसी को उखाड़कर इसके द्वारा शत्रुओं को मार भगाऊँगा।

वैशम्पायन जी कहते हैं- राजन्! यह कहकर भीमसेन मोनमत्त गजराज की भाँति उस वृद्वा की ओर देखने लगे। तब धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने वीर भ्राता से कहा- ‘भीमसेन! ऐसा दुःसाहस न करो, इस वृक्ष को खड़ा रहने दो। यदि तुम इस महावृक्ष को उखाड़ने का अतिमानुष (मानवों के लिये असाध्य) कर्म करोगे, तो सब लोग पहचान लेंगे कि यह तो भीम हे। अतः भारत! तुम किसी दूसरे मानवाचित आयुध का ही ग्रहण करो। ‘धनुष, शक्ति, खड्ग अथवा कुठार, जो भी मनुष्योचित्त अस्त्र-शस्त्र तुम्हें ठीक लगे; जिससे तुम दूसरों द्वारा पहचाने न जा सको, वही लेकर राजा को शीघ्र छुड़ाओ। ये महाबली नकुल और सहदेव तुम्हारे रथ के पहियों की रक्षा करेंगे। तुम तीनों भाई युद्ध में एक साथ मिलकर महाराज विराट को छुड़ाओ।

सुशर्मा की चिंता

वैशम्पायन जी कहते हैं- राजन्! युधिष्ठिर के उक्त आदेश देने पर महान वेगशाली महाबली भीमसेन ने शीघ्रता-पूर्वक एक उत्तम धनुष हाथ में ले लिया। फिर तो जैसे मेघ जल की धारा बरसाता हो, उसी प्रकार वे वेगपूर्वक बाणों की वर्षा करने लगे। तदनन्तर भीमसेन भयंकर कर्म करने वाले सुशर्मा की ओर दौड़े और विराट की ओर देखते हुए सुयार्मा से बोले- ‘अरे! खड़ा रह, खड़ा रह’। रथियों में श्रेष्ठ सुशर्मा पीछे की ओर से आते और ‘खड़ा रह, खड़ा रह’ कहते हुए काल, अन्तक एवं यमराज के समान भयंकर वीर पुरुष को देखकर चिन्ता में पड़ गया और अपने साथियों से बोला- ‘देखो, फिर बड़ा भारी युद्ध उपस्थित हुआ है। इसमें महान पराक्रम दिखाओ’। ऐसा कहकर सुशर्मा भाइयों सहित धनुष उठाये लौट पड़ा।

भीमसेन द्वारा बाणों की वर्षा

इधर महात्मा भीमसेन ने निमेषमात्र में ही गदा लेकर शत्रुओं के भयंकर धनुष धारण करने वाले रथी, हाथी सवार और घुड़सवार वीरों के एक लाख सैनिकों के समूहों को राजा विराट के समीप मार डाला और बहुत से पैदल सिपाहियों का भी संहार कर डाला। ऐसा भयानक युद्ध देख रणोन्मत्त सुशर्मा मन-ही-मन सोचने लगा, ‘जान पड़ता है, मेरी सेना बुरी तरह मारी जायगी; क्योंकि मेरा दूसरा भाई भी पहले से ही इस विशाल सैन्य-समुद्र में डूबा हुआ दिखायी देता है’। ऐसा विचार कर वह कान तक खींचे हुए धनुष के द्वारा युद्ध के लिये उद्यत दिखायी देने लगा। सुशर्मा बारंबार तीखे बाणों की झड़ी लगा रहा है, यह देखकर सम्पूर्ण मत्स्यदेशीय योद्धा त्रिगर्तों के प्रति कुपित हो दिव्यास्त्र प्रकट करते हुए अपने रथों के घोड़ों को आगे बढ़ाने लगे। पाण्डवों को त्रिगर्तों की ओर रथ लौटाते देख मत्स्यवीरों की वह विशाल वाहिनी भी लौट पड़ी। विराट के पुत्र श्वेत अत्यनत क्रोध में भरकर बड़ा अद्भुत युद्ध करने लगे। कुन्तीपुत्र युधिष्ठिर ने एक हजार त्रिगर्तों को मार गिराया। भीमसेन ने सात हजार योद्धाओं को यमलोक का दर्शन कराया।। नकुल ने अपने बाधों से सात सौ सैनिकों को यमराज के घर भेज दिया तथा पुरुषों मे प्रतापी वीर सहदेव ने युधिष्ठिर की आज्ञा से तीन सौ शूरवीरों का संहार कर डाला।[2]

पांडवों द्वारा विराट को सुशर्मा से छुड़ाना

तदनन्तर महारथी सहदेव त्रिगर्तों की उस महासेना का संहार करके अत्यंत उग्र रूप धारण किये हाथ में धनुष ले सुशर्मा पर चढ़ आये। तत्पश्चात् महारथी राजा युधिष्ठिर भी बड़ी उतावली के साथ सुशर्मा पर धावा बोलकर उसे बाणों द्वारा बारंबार बींधने लगे। तब सुशर्मा ने भी अत्यनत कुपित हो बड़ी फुर्ती के साथ नौ बाणों से राजा युधिष्ठिर को और चार बाणों से उनके चारों घोड़ों को बींध डाला। राजन्! फिर तो शीघ्रता करने वाले कुन्तीपुत्र भीम ने सुशर्मा के पास पहुँचकर उत्तम बाणों से उसके घोड़ों को मार डाला। साथ ही [3]उसके पृष्ठ रक्षकों को भी मारकर कुपित हो उसके सारथि को भी रथ से नीचे गिरा दिया। सुशर्मा को रथ हीन हुआ देखकर राजा विराट के चक्ररक्षक सुप्रसिद्ध वीर मदिराक्ष भी वहाँ आ पहुँचे और त्रिगर्तनरेश पर बाणों से प्रहार करने लगे। इसी बीच में बलवान राजा विराट सुशर्मा के रथ से कूद पड़े और उसकी गदा लेकर उसी की ओर दौड़े। उस समय हाथ में गदा लिये राजा विराट बूढ़े होने पर भी तरुण के समान रणभूमि में विचर रहे थे। इसी बीच में मौका पाकर त्रिगर्तराज भागने लगा।

भीमसेन द्वारा त्रिगर्तराज को पीठ दिखाकर भागने से रोकना

उसे पलायन करते देख भीमसेन बोले- ‘राजकुमार! लौट आओ। तुम्हारा युद्ध से पीठ दिखाकर भागना उचित नहीं है। ‘इसी पराक्रम के भरोसे तुम विराट की गौओं को बलपूर्वक कैसे ले जाना चाहते थे ? अपने सेवकों को शत्रुओं के बीच में छोड़कर क्यों भागते और विषाद करते हो ?’। भीमसेन के ऐसा कहने पर रथियों के यूथ का अधिपति बलवान सुशर्मा ‘खड़ा रह, खड़ा रह’, ऐसा कहते हुए सहसा भीमसेन पर टूट पड़ा। परंतु पाण्डुननदन भीम तो भीम जैसे ही थे; वे तनिक भी व्यग्र नहीं हुए; अपितु रथ से कूदकर सुशर्मा के प्राण लेने के लिये बड़े वेग से उसकी ओर दौड़े। तब सुशर्मा भाग चला और पराक्रमी भीम त्रिगर्त राजा को पकड़ने के लिये उसी प्रकार उसका पीछा करने लगे, जैसे सिंह छोटे मृगों को पकड़ने के लिये जाता है।

भीमसेन द्वारा त्रिगर्तराज को कैद करना

सुशर्मा के पास पहुँचकर भीम ने उसके केश पकड़ लिये और क्रोध पूर्वक उसे उठाकर पृथ्वी पर दे मारा। तत्पश्चात् उसे वहीं रगड़ने लगे। इससे सुशर्मा विलाप करने लगा। उस समय भीम ने उसके मस्तक पर लात मारी और उसके पेट को घुटनों से दबाकर ऐसा घूँसा मारा कि उसके भारी आघात से पीड़ित होकर राजा सुशर्मा मूर्च्छित हो गया। त्रिगर्तों का महारथी वीर सुशर्मा जब रथ हीन होकर कैद कर लिया गया, तब वह सारी त्रिगर्त सेना भय से व्याकुल हो तितर-बितर हो गयी। तदनन्तर पाण्डु के महारथी पुत्र सुशर्मा को परास्त करने के पश्चात् सब गौओं को लौटाकर और लूट का सारा धन वापस लेकर चले।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत विराट पर्व अध्याय 33 श्लोक 1-14
  2. महाभारत विराट पर्व अध्याय 33 श्लोक 15-34
  3. महाभारत विराट पर्व अध्याय 33 श्लोक 35-54

संबंधित लेख

महाभारत विराट पर्व में उल्लेखित कथाएँ


पांडवप्रवेश पर्व
विराटनगर में अज्ञातवास करने हेतु पांडवों की गुप्त मंत्रणा | अज्ञातवास हेतु युधिष्ठिर द्वारा अपने भावी कार्यक्रम का दिग्दर्शन | भीमसेन और अर्जुन द्वारा अज्ञातवास हेतु अपने अनुकूल कार्यों का वर्णन | नकुल, सहदेव और द्रौपदी द्वारा अज्ञातवास हेतु अपने कर्तव्यों का दिग्दर्शन | धौम्य द्वारा पांडवों को राजा के यहाँ रहने का ढंग बताना | पांडवों का श्मशान में शमी वृक्ष पर अपने अस्त्र-शस्त्र रखना | युधिष्ठिर द्वारा दुर्गा देवी की स्तुति | युधिष्ठिर का राजसभा में राजा विराट से मिलना | युधिष्ठिर का विराट के यहाँ निवास पाना | भीमसेन का विराट की सभा में प्रवेश और राजा द्वारा उनको आश्वासन | द्रौपदी का सैरन्ध्री के वेश में रानी सुदेष्णा से वार्तालाप | द्रौपदी का रानी सुदेष्णा के यहाँ निवास पाना | सहदेव की विराट के यहाँ गौशाला में नियुक्ति | अर्जुन की विराट के यहाँ नृत्य प्रशिक्षक के पद पर नियुक्ति | नकुल का विराट के अश्वों की देखरेख में नियुक्त होना
समयपालन पर्व
भीमसेन द्वारा जीमूत नामक मल्ल का वध
कीचकवध पर्व
कीचक की द्रौपदी पर आसक्ति और प्रणय निवेदन | द्रौपदी द्वारा कीचक को फटकारना | सुदेष्णा का द्रौपदी को कीचक के यहाँ भेजना | कीचक द्वारा द्रौपदी का अपमान | द्रौपदी का भीमसेन के समीप जाना | द्रौपदी का भीमसेन से अपना दु:ख प्रकट करना | द्रौपदी का भीमसेन के सम्मुख विलाप | द्रौपदी का भीमसेन से अपना दु:ख निवेदन करना | भीमसेन और द्रौपदी का संवाद | भीमसेन और कीचक का युद्ध | भीमसेन द्वारा कीचक का वध | उपकीचकों का सैरन्ध्री को बाँधकर श्मशानभूमि में ले जाना | भीमसेन द्वारा उपकीचकों का वध | द्रौपदी का विराट नगर में लौटकर आना | द्रौपदी का बृहन्नला और सुदेष्णा से वार्तालाप
गोहरण पर्व
दुर्योधन को उसके गुप्तचरों द्वारा कीचकवध का वृत्तान्त सुनाना | दुर्योधन का सभासदों से पांडवों का पता लगाने हेतु परामर्श | द्रोणाचार्य की सम्मति | युधिष्ठिर की महिमा कहते हुए भीष्म की पांडव अन्वेषण के विषय में सम्मति | कृपाचार्य की सम्मति और दुर्योधन का निश्चय | सुशर्मा का कौरवों के लिए प्रस्ताव | त्रिगर्तों और कौरवों का मत्स्यदेश पर धावा | पांडवों सहित विराट की सेना का युद्ध हेतु प्रस्थान | मत्स्य तथा त्रिगर्त देश की सेनाओं का युद्ध | सुशर्मा द्वारा विराट को बन्दी बनाना | पांडवों द्वारा विराट को सुशर्मा से छुड़ाना | युधिष्ठिर का अनुग्रह करके सुशर्मा को मुक्त करना | विराट द्वारा पांडवों का सम्मान | विराट नगर में राजा विराट की विजय घोषणा | कौरवों द्वारा विराट की गौओं का अपहरण | गोपाध्यक्ष का उत्तरकुमार को युद्ध हेतु उत्साह दिलाना | उत्तर का अपने लिए सारथि ढूँढने का प्रस्ताव | द्रौपदी द्वारा उत्तर से बृहन्नला को सारथि बनाने का सुझाव | बृहन्नला के साथ उत्तरकुमार का रणभूमि को प्रस्थान | कौरव सेना को देखकर उत्तरकुमार का भय | अर्जुन का उत्तरकुमार को आश्वासन देकर रथ पर चढ़ाना | द्रोणाचार्य द्वारा अर्जुन के अलौकिक पराक्रम की प्रशंसा | अर्जुन का उत्तर को शमीवृक्ष से अस्त्र उतारने का आदेश | उत्तर का शमीवृक्ष से पांडवों के दिव्य धनुष आदि उतारना | उत्तर का बृहन्नला से पांडवों के अस्त्र-शस्त्र के विषय में प्रश्न करना | बृहन्नला द्वारा उत्तर को पांडवों के आयुधों का परिचय कराना | अर्जुन का उत्तरकुमार को अपना और अपने भाइयों का यथार्थ परिचय देना | अर्जुन द्वारा युद्ध की तैयारी तथा अस्त्र-शस्त्रों का स्मरण | अर्जुन द्वारा उत्तरकुमार के भय का निवारण | अर्जुन को ध्वज की प्राप्ति तथा उनके द्वारा शंखनाद | द्रोणाचार्य का कौरवों से उत्पात-सूचक अपशकुनों का वर्णन | दुर्योधन द्वारा युद्ध का निश्चय | कर्ण की उक्ति | कर्ण की आत्मप्रंशसापूर्ण अहंकारोक्ति | कृपाचार्य का कर्ण को फटकारना और युद्ध हेतु अपना विचार बताना | अश्वत्थामा के उद्गार | भीष्म द्वारा सेना में शान्ति और एकता बनाये रखने की चेष्टा | द्रोणाचार्य द्वारा दुर्योधन की रक्षा के प्रयत्न | पितामह भीष्म की सम्मति | अर्जुन का दुर्योधन की सेना पर आक्रमण और गौओं को लौटा लाना | अर्जुन का कर्ण पर आक्रमण और विकर्ण की पराजय | अर्जुन द्वारा शत्रुंतप और संग्रामजित का वध | कर्ण और अर्जुन का युद्ध तथा कर्ण का पलायन | अर्जुन द्वारा कौरव सेना का संहार | उत्तर का अर्जुन के रथ को कृपाचार्य के पास लेना | अर्जुन और कृपाचार्य का युद्ध देखने के लिए देवताओं का आगमन | कृपाचार्य और अर्जुन का युद्ध | कौरव सैनिकों द्वारा कृपाचार्य को युद्ध से हटा ले जाना | अर्जुन का द्रोणाचार्य के साथ युद्ध | द्रोणाचार्य का युद्ध से पलायन | अर्जुन का अश्वत्थामा के साथ युद्ध | अर्जुन और कर्ण का संवाद | कर्ण का अर्जुन से हारकर भागना | अर्जुन का उत्तरकुमार को आश्वासन | अर्जुन से दु:शासन आदि की पराजय | अर्जुन का सब योद्धाओं और महारथियों के साथ युद्ध | अर्जुन द्वारा कौरव सेना के महारथियों की पराजय | अर्जुन और भीष्म का अद्भुत युद्ध | अर्जुन के साथ युद्ध में भीष्म का मूर्च्छित होना | अर्जुन और दुर्योधन का युद्ध | दुर्योधन का विकर्ण आदि योद्धाओं सहित रणभूमि से भागना | अर्जुन द्वारा समस्त कौरव दल की पराजय | कौरवों का स्वदेश को प्रस्थान | अर्जुन का विजयी होकर उत्तरकुमार के साथ राजधानी को प्रस्थान | विराट की उत्तरकुमार के विषय में चिन्ता | उत्तरकुमार का नगर में प्रवेश और प्रजा द्वारा उनका स्वागत | विराट द्वारा युधिष्ठिर का तिरस्कार और क्षमा-प्रार्थना | विराट का उत्तरकुमार से युद्ध का समाचार पूछना | विराट और उत्तरकुमार की विजय के विषय में बातचीत | अर्जुन का विराट को महाराज युधिष्ठिर का परिचय देना | विराट को अन्य पांडवों का परिचय प्राप्त होना | विराट का युधिष्ठिर को राज्य समर्पण और अर्जुन-उत्तरा विवाह का प्रस्ताव | अर्जुन द्वारा उत्तरा को पुत्रवधू के रूप में ग्रहण करना | अभिमन्यु और उत्तरा का विवाह | विराट पर्व श्रवण की महिमा

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