अर्जुन द्वारा उत्तरकुमार के भय का निवारण

महाभारत विराट पर्व के गोहरण पर्व के अंतर्गत अध्याय 45 में अर्जुन द्वारा उत्तरकुमार के भय निवारण का वर्णन हुआ है। यहाँ वैशम्पायन जी ने जनमेजय से अर्जुन द्वारा उत्तरकुमार के भय निवारण की कथा कही है।[1]

अर्जुन द्वारा उत्तरकुमार के भय का निवारण

तब वे सब अस्त्र प्रकट होकर राजकुमार अर्जुन से हाथ जोड़कर बोले- ‘पाण्डु नन्दन! ये हम लोग तुम्हारे परम उदार किंकर हैं’। तब अर्जुन ने उन्हें प्रणाम करके अपने हाथ से उनका स्पर्श किया और कहा- ‘आप सब लोग मेरे मन में निवास करें।’ इस प्रकार अपने अस्त्र शस्त्रों को अनुकूल करके अर्जुन का मुखारविन्द प्रसन्नता से खिल उठा। उन्होंने बड़े वेग से गाण्डीव धनुष पर प्रत्यन्चा चढ़ाकर उसकी टंकार की। उस धनुष की टंकार के समय बड़े जोर का शब्द हुआ, मानो किसी महान पर्वत को पर्वत से ही टक्कर लगी हो। वह भयानक शब्द पृथ्वी को विदीर्ण करता सा गूँज उठा। सम्पूर्ण दिशाओं में प्रचण्ड आँधी चलने लगी, महान उल्कापात होने लगा और दिशाओं में अंधकार छा गया। शत्रु सेना के ध्वज आकाश में अकारण हिलने लगे। बड़े-बड़े वृक्ष भी हिलने लगे। अर्जुन ने अपने दोनों हाथों से रथ पर बैठे-बैठे जो अपने श्रेष्ठ धनुष की टंकार की, उसे सुनकर कौरवों ने समझा कहीं से बिजली टूट पड़ी है।[1]

उस समय उत्तर बोला- पाण्डवश्रेष्ठ! आप तो अकेले हैं, इन सम्पूर्ण अस्त्र-शस्त्रों के परागामी बहुसंख्यक महारथियों को युद्ध में कैसे जीत सकेंगे? कुन्ती नन्दन! आप असहाय हैं और कौरवों के साथ बहुतेरे सहायक हैं। महाबाहो! यह सोचकर मैं आपके सामने भयभीत हो रहा हूँ।

यह सुनकर अर्जुन खिलखिलाकर हँस पड़े और बोले- ‘वीर! डरो मत! कौरवों की घोष यात्रा के समय जब मैंने महाबली गन्धर्वों के साथ युद्ध किया था, उस समय मेरा सखा या सहायक कौन था? जब देवताओं और दानवों से भरे हुए उस अत्यनत भयंकर खाण्डव वन में मैं युद्ध कर रहा था, उस समय मेरा साथी कौन था? देवराज इन्द्र के लिये महाबली निवात कवच और पौलोम दैत्यों के साथ युद्ध करते समय मेरा कौन सहायक था? तात! द्रौपदी के स्वयंवर में जब मुझे अनेक राजाओं के साथ युद्ध करना पड़ा था, उस समय किसने मेरी सहायता की थी?

मैं गुरुवर द्रोणाचार्य?, इन्द्र, कुबेर, यमराज, वरुण, अग्निदेव, कृपाचार्य, लक्ष्मीपति श्रीकृष्ण तथा पिनाकपाणि भगवान शंकर- इन सबका आश्रय पा चुका हूँ; फिर भला, इन महारथियों से युद्ध क्यो नहीं कर सकूँगा? शीघ्र मेरा रथ हाँको; तुम्हारी मानसिक चिन्ता दूर हो जानी चाहिये।[2]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत विराट पर्व अध्याय 45 श्लोक 19-32
  2. महाभारत विराट पर्व अध्याय 45 श्लोक 33-41

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