नकुल, सहदेव और द्रौपदी द्वारा अज्ञातवास हेतु अपने कर्तव्यों का दिग्दर्शन

महाभारत विराट पर्व के पांडवप्रवेश पर्व के अंतर्गत अध्याय 3 में नकुल, सहदेव और द्रौपदी द्वारा अज्ञातवास हेतु अपने कर्तव्यों का दिग्दर्शन का वर्णन हुआ है। यहाँ वैशम्पायन जी ने जनमेजय से नकुल, सहदेव और द्रौपदी द्वारा अज्ञातवास हेतु अपने कर्तव्यों का दिग्दर्शन के वर्णन की कथा कही है।[1]

नकुल द्वारा अज्ञातवास हेतु कर्तव्यों का दिग्दर्शन

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! धर्मात्माओं में श्रेष्ठ तथा पुरुषों में महान वीर अर्जुन इस प्रकार कहकर चुप हो गये। तब राजा युधिष्ठिर पुनः दूसरे भाई से बोले। युधिष्ठिर ने पूछा- नकुल! तुम राजा विराट के राज्य में कौन सा कार्य करते हुए निवास करोगे? वह कार्य बताओ। तात! तुम तो शूरवीर होने के साथ ही अत्यन्त सुकुमार, परम दर्शनीय और सर्वथा सुख भोगने के योग्य हो।

नकुल बोले- राजन! मैं राजा विराट के यहाँ अश्वबन्ध[2]होकर रहूँगा। मैं अश्व-विज्ञान से सम्पन्न और घोड़ों की रक्षा के कार्य में कुशल हूँ। मैं राजसभा में ग्रन्थिक नाम से अपना परिचय दूँगा। घोड़ों की देखभाल का काम मुझे अत्यन्त प्रिय है। उन्हें भाँति-भाँति की चालें सिखाने और उनकी चिकित्सा करने में भी मैं निपुध हूँ। कुरुराज! आपकी ही भाँति मुझे भी घोड़े सदैव प्रिय रहे हैं।[3]विराटनगर में जो लोग मुझसे पूछेंगे, उन्हें मैं इस प्रकार उत्तर दूँगा- ‘तात! पहले पाण्डुनन्दन राजा युधिष्ठिर मुझे अश्वों का अध्यक्ष बनाकर रक्खा था।’ महीपते! मैं जिस प्रकार वहाँ विहार करूँगा, वह सब मेंने आपको बता दिया। राजाविराट के नगर में अपने को छिपाये रखकर ही मैं सर्वत्र विचरूँगा।

सहदेव द्वारा अज्ञातवास हेतु कार्य का वर्णन

युधिष्ठिर ने सहदेव से पूछा- भैया सहदेव! तुम राजा विराट के समीप कैसे जाओगे उनके यहाँ क्या काम करते हुए गुप्त रूप से निवास करोगे? सहदेव ने कहा- महाराज! मैं राजा विराट के यहाँ गौओं की गिनती- जाँच-पड़ताल करने वाला गोशालाध्यक्ष होकर रहूँगा। मैं गौओं को नियन्त्रण में रखने और दुहने का काम अच्छी तरह जानता हूँ। उन्हें गिनने और उनकी परख पहचान के काम में भी कुशल हूँ। मैं वहाँ तन्तिपाल नाम से प्रसिद्ध होऊँगा। इसी नाम से मुझे सब लोग जानेगे। मैं बड़ी चतुराई से अपने को छिपाये रखकर वहाँ सब ओर विचरूँगा; अतः मेरे विषय में आपकी मानसिक चिन्ता दूर हो जानी चाहिये। राजन! मेरे द्वारा रक्षित होकर राजा विराट के पशु तथा गौएँ नीरोग, संख्या में अधिक, हृष्ट-पुष्ट, अधिक दूध देने वाली, बहुत संतानों वाली, सत्त्वयुक्त, अच्छी तरह सम्हाल होने से रोगरूप पाप से रहित, चोरों के भय से मुक्त तथा सदा व्याधि एवं बाघ आदि के भय से रहित होंगे ही।। भूपाल! पहले आपने मुझे सदा गौओं की देखभाल में नियुक्त किया है। इस कार्य में मैं कितना दक्ष हूँ, यह सब आपको विदित ही है। महीपते! गौओं के जो लक्षण ओर चरित्र मंगलकारक होते हैं, वे सब मुझे भलीभाँति मालूम हैं। उनके विषय में और भी बहुत सी बातें में जानता हूँ। राजन! इनके सिवा मैं ऐसे प्रशंसनीय लक्षणों वाले साँड़ों को भी जानता हूँ, जिनके मूत्र को सूंघ लेने मात्र से वन्ध्या स्त्री भी गर्भवती हो जाती है। इस प्रकार में गौओं की सेवा करूँगा। इस कार्य में मुझे सदा से प्रेम रहा है। वहाँ मुझे कोई पहचान नहीं सकेगा। मैं अपने कार्य से राजा विराट को संतुष्ट कर लूँगा।[4][1]

द्रौपदी द्वारा अज्ञातवास हेतु कार्यक्रम का दिग्दर्शन

युधिष्ठिर बोले- यह द्रुपद कुमारी कृष्णा हम लोगों की प्यारी भार्या है। इसका गौरव हमारे लिये प्राणों से भी बढ़कर हैं। यह माता (पृथ्वी) की भाँति पालन करने योग्य तथा बड़ी बहन (धेनु) के समान आदरणीय है। यह तो दूसरी स्त्रियों की भाँति कोई काम-काज भी नहीं जानती; फिर वहाँ किस कर्म का आश्रय लेकर निवास करेगी? इसका शरीर अत्यन्त सुकुमार है। इसकी अवस्था नयी है। यह यशस्विनी राजकुमारी परम सौभाग्यवती तथा पतिव्रता है। भला, यह विराटनगर में किस प्रकार रहेगी? इस भामिनी ने जब से जन्म लिया है, तब से अब तक माला, सुगन्धित पदार्थ, भाँति-भाँति के गहने तथा अनेक प्रकार के वस्त्रों को ही जाना है। इसने कभी कष्ट का अनुभव नहीं किया है।

द्रौपदी ने कहा - भारत! इस जगत में बहुत सी ऐसी स्त्रियाँ हैं? जिनका दूसरों के घरों में पालन होता है और जो शिल्पकर्मों द्वारा जीवन निर्वाह करती हैं। वे अपने सदाचार से स्वतः सुरक्षित होती हैं। ऐसी स्त्रियो को सैरन्ध्री कहते हैं। लोगों को अच्छी तरह मालूम है कि सैरन्ध्री की भाँति दूसरी स्त्रियाँ बाहर की यात्रा नहीं करती,[5]इसलिये में सैंरन्ध्री कहकर अपना परिचय दूँगी। बालों को सँवारने और वेणी-रचना आदि के कार्य में मैं बहुत निपुण हूँ। यदि राजा मुझसे पूछेंगे, तो कह दूँगी कि मैं महाराज युधिष्ठिर के महल में महारानी द्रौपदी की परिचारिका बन कर रही हूँ’। मैं अपनी रक्षा स्वयं करूँगी। आप जो मुझसे पूछते हैं कि वहाँ क्या करोगी ? कैसे रहोगी ? उसके उत्तर में निवेदन है कि मैं यशस्विनी राजपत्नी सुदेष्णा के पास जाऊँगी। मुझे अपने पास आयी हुई जानकर वे रख लेंगी और सब प्रकार से मेरी रक्षा करेंगी। अतः आपके मन में इस बात का दुःख नहीं होना चाहिये कि द्रौपदी कैसे सुरक्षित रह सकेगी।

युधिष्ठिर बोले - कृष्णे! तुमने भली बात कही, इसमें कल्याण ही भरा हैं। क्यों न हो, तुम ऊँचे कुल में उत्पन्न जो हुई हो! भामिनी! तुम्हें पाप का रञ्चमात्र भी ज्ञान नहीं है। तुम साध्वी हो और उत्तम व्रत के पालन में तत्पर रहती हो। कल्याणि! वहाँ ऐसा बर्ताव करना, जिससे वे पापी शत्रु फिर सुखी होने का अवसर न पा सकें; वे तुम्हें किसी तरह पहचान न सकें।[6]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत विराट पर्व अध्याय 3 श्लोक 1-13
  2. घोड़ों को वश में करने वाला सवार
  3. नकुल ने अपना नाम ग्रन्थिक बताय और अपने को अश्वों का अधिकारी कहा है। ग्रंथि का अर्थ है आयुर्वेद तथा अध्बर्यु-विद्या सम्बंधी युगो को जानने वाला। श्रुति में अश्विनीकुमारों को देवता को वैद्य तथा अध्वर्यु कहा गया है। 'अश्विनौ वै देवानां भिषजावश्विनावध्वर्यु।' नकुल अश्विनी कुमारों के पुत्र है; अत: उनका अपने में कहना उपयुक्त ही है। 'नास्ति श्वो येषां ते अश्वा:' जिनके कल तक जीवित रहने की आशा छोड़कर युद्ध में डटे रहने बाले वीरों को अश्व कहते हैं। नकुल उनके अधिकारी अर्थात वीरों मे प्रधान है। अत: उनका यह परिचय यथार्थ ही है।
  4. 'तस्य वाक्तन्तिर्नामानि दमानि' इस स्तुति के अनुसार तांति शब्द वाणी का वाचक है। तन्तिपाल कहकर सहदेव ने गूढ़रूप से युधिष्ठिर को यह बताया कि मै आपकी प्रत्येक आशा का पालन करुँगा। साधारण लोगों को दृष्टि में तन्तिपाल का अर्थ है बैलों को बाँधने की रस्सी को सुरक्षित रखने वाला। अत: सहदेव ने भी अपना परिचय यथार्थ ही दिया।
  5. अतः सैरन्ध्री के वेश में मुझे कोई पहचान नहीं सकेगा।
  6. महाभारत विराट पर्व अध्याय 3 श्लोक 14-23

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