द्रौपदी का रानी सुदेष्णा के यहाँ निवास पाना

महाभारत विराट पर्व के पाण्डवप्रवेश पर्व के अंतर्गत अध्याय 9 में द्रौपदी का रानी सुदेष्णा के यहाँ निवास पाने का वर्णन हुआ है[1]-

सुदेष्णा का संवाद

सुदेष्णा ने कहा- सुन्दरी! यदि मेरे मन में संदेह न होता, तो मैं तुम्हें अपने सिर माथे रचा लेती। यदि राजा तुम्हें चाहने न लगें- सम्पूर्ण चित्त से तुम पर आसक्त न हो जायँ तो तुम्हें रखने में मुझे कोई आपत्ति न होगी। इस राजकुल में जितनी स्त्रियाँ हैं, वे सब एकटक तुम्हारी ओर निहार रही हैं; फिर पुरुष कौन ऐसा होगा, जिसे तुम मोहित न कर सको ? देखो, मेरे भवन में ये जो वृक्ष खड़े हैं, वे भी तुमहें देखने के लिये मानो झुके से पड़ते हैं। फिर पुरुष कौन ऐसा होगा, जिसे तुम मोहित न कर लो ? सुन्दर नितम्बों वाली सुन्दरी! तुम्हारे सम्पूर्ण अंग सुन्दर हैं। राजा विराट तुम्हारा यह दिव्य रूप देखते ही मुझे छोड़कर सम्पूर्ण चित्त से तुम्हीं में आसक्त हो जायँगे। निर्दोष अंगों तथा चंचल एवं विशाल नेत्रों वाली सैरन्ध्री! जिस पुरुष की ओर तुम ध्यान से देख लोगी, वही काम के अधीन हो जायगा। शुभांगि! चारुहासिनी! इसी प्रकार जो पुरुष प्रतिदिन तुम्हें देखेगा, वह भी कामदेव के वशीभूत हो जायगा। सुभ्रु! जैसे कोई मूर्ख मनूष्य आत्महत्या के लिये (गिरने के उद्देश्य) वृक्षों पर चढ़े, उसी प्रकार राजमहल में या अपने घर में तुम्हें रखना मेरे लिये अनिष्टकारी हो सकता है। शुचिस्मिते! जैसे केंकड़े की मादा अपने मृत्यु के लिये ही गर्भ धारण करती है, उसी प्रकार तुम्हें इस घर में ठहराना मैं अपने लिये मरण के तुल्य मानती हूँ।

द्रौपदी का संवाद

द्रौपदी बोली- भामिनि! मुझे राजा विराट या दूसरा कोई पुरुष कभी नहीं पा सकता। पाँच तरुण गन्धर्व मेरे पति हैं। वे सब किसी महान शक्तिशाली गन्धर्वराज[2] के पुत्र हैं। वे ही मेरी रक्षा करते हैं तथा में स्वयं भी दुर्धर्ष हूँ। जो मुझे जूँठा अन्न नहीं देता और मुझसे अपने पैर नहीं धुलवाता, उसके व्यवहार से मेरे पति गन्धर्वलोग प्रसन्न रहते हैं। परंतु जो पुरुष मुझे अन्य प्राकृत स्त्रियों के समान समझकर (बलपूर्वक) प्राप्त करना चाहता है, उसका उसी रात में परलोकवास हो जाता है। अतः कल्याणि! मुझे कोई भी सतीत्व से विचलित नहीं कर सकता। शुचिस्मिते! यद्यपि मेरे पति गन्धर्वगण इस समय दुःख में पड़े हैं; तथापि वे बड़े बलवान हैं और गुप्तरूप से मेरी रक्षा करते रहते हैं।

द्रौपदी का रानी सुदेष्णा के यहाँ निवास पाना

सुदेष्णा ने कहा- आनन्ददायिनी सुन्दरी! यदि (तुम्हारा शील स्वभाव) ऐसा है, तो मैं जैसी तुम्हारी इच्छा है, उसके अनुसार तुम्हें अवश्य अपने घर में ठहराऊँगी। तुम्हें किसी प्रकार पैर या जूँठन नहीं छूने पड़ेंगे।

वैशम्पायन जी कहते हैं- विराट की रानी ने जब इस प्रकार आश्वासन दिया, तब पतिव्रत्व धर्म का पालन करने वाली सती द्रौपदी उस नगर में रहने लगी। जनमेजय! वहाँ दूसरा कोई मनुष्य उसका वास्तविक परिचय न पा सका।[3]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. [[महाभारत विराट पर्व अध्याय 9 श्लोक 14-31]
  2. यहाँ 'गन्धर्वराज' कहने का गूढ़ अभिप्राय यह है कि वे गन्धर्वतुल्य राजा पाण्डु के पुत्र हैं।
  3. महाभारत विराट पर्व अध्याय 9 श्लोक 32-37

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