भीमसेन और अर्जुन द्वारा अज्ञातवास हेतु अपने अनुकूल कार्यों का वर्णन

महाभारत विराट पर्व के पांडवप्रवेश पर्व के अंतर्गत अध्याय 2 में भीमसेन और अर्जुन द्वारा अज्ञातवास हेतु अपने अनुकूल कार्यों का वर्णन हुआ है। यहाँ वैशम्पायन जी ने जनमेजय से विराटनगर में भीमसेन और अर्जुन द्वारा अज्ञातवास हेतु अपने अनुकूल कार्यों के वर्णन की कथा कही है।[1]

अज्ञातवास हेतु भीमसेन द्वारा भावी कार्य का वर्णन

भीमसेन ने कहा- भरतवंशशिरोमणि! मैं पौरोगर्व[2][3] बनकर और बल्लव के नाम से अपना परिचय देकर राजा विराट के दरबार में उपस्थि होऊँगा। मेरा यही विचार है। मैं रसोई बनाने के काम में चतुर हूँ। अपने ऊपर राजा के मन में अत्यंत प्रेम उत्पन्न करने के उद्देश्य से उनके लिये सूप (दाल, कढ़ी, एंव साग) तैयार करूँगा और पाकशाला में भलीभाँति शिक्षा पाये हुए चतुर रसोइयों ने राजा के लिये पहले जो-जो व्यंजन बनाये होंगे, उन्हें भी अपने बलाये हुए व्यंजनों से तुच्छ सिद्ध कर दूँगा। इतना ही नहीं, मैं रसोई के लिये लकडियो के बड़े से बड़े गट्ठों को भी उठा लाऊँगा, जिस महान कर्म को देखकर राजा विराट मुझे अवश्य रसोइये के काम पर नियुक्त कर लेंगे। भारत! मैं वहाँ ऐसे-ऐसे अद्भुत कार्य करता रहूँगा, जो साधारण मनुष्यों की शक्ति के बाहर है। इससे राजा विराट के दूसरे सेवक राजा विराट की तरह ही मेरा सम्मान करेंगे और मैं भक्ष्य, भोज्य, रस और पेय पदार्थों का इच्छानुसार उपयोग करने में समर्थ होऊँगा। राजन! बलवान हाथी अथवा महाबली बैल भी यदि काबू में करने के लिये मुण सौंपे जाँयगे तो मैं उन्हें भी बाँधकर अपने वश में कर लूँगा। तथा जो कोई भी मल्लयुद्ध करने वाले पहलवान जन-समाज में दंगल करना चाहेंगे, राजा का प्रेम बढ़ाने के लिये मैं उनसे भी भिड़ जाऊँगा। परंतु कुश्ती करने वाले इन पहलवानों को मैं किसी प्रकार जान से नहीं मारूँगा; अपितु इस प्राकर नीचे गिराऊँगा, जिससे उनकी मृत्यु न हो। महाराज के पूछने पर मैं यह कहूँगा कि मैं राजा युधिष्ठिर के यहाँ आरालिक [4], गोविकर्ता (महाबली वृषभों को भी पछाड़कर उन्हें नाथने वाला), सूपकर्ता (दाल-साग आदि भाँति-भाँति के व्यन्जन बनाने वाला) तथा नियोधक (दंगली पहलवान) रहा हूँ। राजन! अपने-आप अपनी रक्षा करते हुए मैं विराट के नगर में विचरूँगा। मुझे विश्वास है कि इस प्रकार मैं वहाँ सुखपूर्वक रह सकूँगा। युधिष्ठिर बोले - जो मनुष्यों में श्रेष्ठ महाबली ओर महाबाहु है, पहले भगवान श्रीकृष्ण के साथ बैठे हुए जिस अर्जुन के पास खाण्डववन को जलाने की इच्छा से ब्राह्मण का रूप धारण करके साक्षात अग्निदेव पधारे थे, जो कुरुकुल को आनन्द देने वाला तथा किसी से भी परास्त न होने वाला है, वह कुन्तीनन्दन धनंजय विराटनगर में कौन सा कार्य करेगा? जिससे खण्डवदाह के समय वहाँ पहुँचकर एकमात्र रथ का आश्रय ले इन्द्र को पराजित कर तथा नागों एवं राक्षसों को मारकर अग्निदेव को तृप्त किया और अपने अप्रतिम सौन्दर्य से नागराज वासुकि की बहिन उलूपी का चित्त चुरा लिया एवं जो सचमुच युद्ध करने वाले वीरों में सबसे श्रेष्ठ है, वह अर्जुन वहाँ क्या काम करेगा?[1]

अज्ञातवास हेतु अर्जुन के कार्य का वर्णन

जैसे तपने वाले तेजस्वी पदार्थों में सूर्य श्रेष्ठ है, मनुष्यों में ब्राह्मण का स्थान ऊँचा है, जैसे सर्पों में आशीविष जाति वाले सर्प महान हैं, तेजस्वियों में अग्नि श्रेष्ठ है, अस्त्र-शस्त्रों में वज्र का स्थान ऊँचा है, गौओं में ऊँचे कंधे वाला साँड़ बड़ा माना गया है, जलाशयों में समुद्र सबसे महान है, वर्षा करने वाले मेघों में पर्जन्य श्रेष्ठ है, नागों में धृतराष्ट्र तथा हाथियों में ऐरावत बड़ा है, जैसे प्रिय सम्बन्धियों में पुत्र सबसे अधिक प्रिय है और अकारण हित चाहने वाले सुहृदों में धर्म पत्नी सबसे बढ़कर है, जैसे पर्वतों में मेरु पर्वत श्रेष्ठ है, देवताओं में मधुसूदन भगवान विष्णु श्रेष्ठ हैं, ग्रहों में चन्द्रमा श्रेष्ठ है और सरोवरों में मानसरोवर श्रेष्ठ है। भीमसेन! अपनी-अपनी जाति में जिस प्रकार ये पूर्वोक्त वस्तुएँ विशिष्ट मानी गई हैं, वैसे ही सम्पूर्ण धनुर्घारियों में युवावस्था से सम्पन्न यह गुडाकेश (निद्राविजयी) अर्जुन श्रेष्ठ है। यह देवराज इन्द्र और भगवान श्रीकृष्ण से किसी बात में कम नहीं है। श्वेत घोड़ों वाले रथ पर चलने वाला यह महा तेजस्वी गाण्डीवधारी बीभत्सु (अर्जुन) वहाँ कौन सा कार्य करेगा? इसने पाँच वर्षों तक देवराज इन्द्र के भवन में रहकर ऐसे दिव्यास्त्र प्राप्त किये हैं, जिनका मनुष्यों में होना एक अद्भुत सी बात है। अपने देवोपम स्वरूप से प्रकाशित होने वाले अर्जुन ने अनेक दिव्यास्त्र पाये हैं। जिस अर्जुन को मैं बारहवाँ रुद्र और तेरहवाँ आदित्य मानता हूँ, नवम वसु तथा दसवाँ ग्रह स्वीकार करता हूँ। जिसकी दोनों भुजाएँ एक-सी विशाल हैं; प्रत्यक्ष के आघात से उनकी त्वचा कठोर हो गयी है। जैसे बैलों के कंधों पर जुआइे की रगड़ से चिह्न बन जाता है, उसी प्रकार जिसकी दाहिनी और बायीं भुजाओं पर प्रत्यंचा की रगड़ से चिह्न बन गये हैं। जैसे पर्वतों में हिमालय, सरिताओं में समुद्र, देवताओं में इन्द्र, वसुओं में हव्यवाहक अग्नि, मृगों में सिंह तथा पक्षियों में गरुड़ श्रेष्ठ है, उसी प्रकार कवचधारी वीरों में जिसका स्थान सबसे ऊँचा है, वह अर्जुन विराटनगर में जाकर क्या काम करेगा? अर्जुन ने कहा- महाराज! मैं राजा की सभा में यह दृढ़ता पूर्वक कहूँगा कि मैं षण्डक (नपुंसक) हूँ। राजन! यद्यपि मेरी दायीं-बायीं भुजाओं में धनुष की डोरी की रगड़ से जो महान चिह्न बन गये हैं, उन्हें छिपाना बहुत कठिन है तथापि कंगन आदि आभूषणों से मैं इन ज्याघात चिह्नित भुजाओं का ढक लूँगा।

युधिष्ठिर द्वारा अपने भावी कार्यक्रम का दिग्दर्शन

मैं दोनों कानों में अग्नि के समान कान्तिमान कुण्डल पहनकर हाथों मे शंख की चूडि़याँ धारण कर लूँगा। इस प्रकार तीसरी प्रकृति (नपुंसकभाव) को अपना कर सिर पर चोटी गूँथ लूँगा और अपने को बृहन्नला नाम से घोषित करूँगा। स्त्रीभाव से अपने स्वरूप को छिपाकर बारंबार पूर्ववर्ती राजाओं का गान करके महाराज विराट तथा अन्तःपुर की अन्यान्य स्त्रियों का मनोरंजन करूँगा। राजन! मै विराटनगर की स्त्रियों को गीत गाने, विचित्र ढंग से नृत्य करने तथा भाँति-भाँति के बाजे बजाने की शिक्षा दूँगा। कुन्तीनन्दन! प्रजाजनों के उत्तम आचार-विचार और उनके किये हुए अनेक प्रकार के सत्कर्मों का वर्णन करता हूआ मैं मायामय नपुसक वेश से बुद्धि द्वारा अपने यथार्थ रूप को छिपाये रखूँगा। पाण्डुनन्दन! यदि राजा विराट ने मेरा परिचय पूछा तो मैं कह दूँगा मैं महाराज युधिष्ठिर के घर में महारानी द्रौपदी की परिचारिका रह चुकी हूँ। राजेद्र! इस प्रकार कृत्रिम वेशभूषा से राख में छिपी हुई अग्नि के समान अपने आप को छिपाकर में विराट के महल में सुख पूर्वक निवास करूँगा।[5]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत विराट पर्व अध्याय 2 श्लोक 1-14
  2. 1. पुरोगु कहते है वायु को उनके पुत्र होने से भीमसेन का 'पौरोगब' नाम सत्य एवं सार्थक है।
  3. पाकशाला का अध्यक्ष
  4. मतवाले हाथियों को भी काबू में करने वाला गजशिक्षक
  5. महाभारत विराट पर्व अध्याय 2 श्लोक 15-32

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महाभारत विराट पर्व में उल्लेखित कथाएँ


पांडवप्रवेश पर्व
विराटनगर में अज्ञातवास करने हेतु पांडवों की गुप्त मंत्रणा | अज्ञातवास हेतु युधिष्ठिर द्वारा अपने भावी कार्यक्रम का दिग्दर्शन | भीमसेन और अर्जुन द्वारा अज्ञातवास हेतु अपने अनुकूल कार्यों का वर्णन | नकुल, सहदेव और द्रौपदी द्वारा अज्ञातवास हेतु अपने कर्तव्यों का दिग्दर्शन | धौम्य द्वारा पांडवों को राजा के यहाँ रहने का ढंग बताना | पांडवों का श्मशान में शमी वृक्ष पर अपने अस्त्र-शस्त्र रखना | युधिष्ठिर द्वारा दुर्गा देवी की स्तुति | युधिष्ठिर का राजसभा में राजा विराट से मिलना | युधिष्ठिर का विराट के यहाँ निवास पाना | भीमसेन का विराट की सभा में प्रवेश और राजा द्वारा उनको आश्वासन | द्रौपदी का सैरन्ध्री के वेश में रानी सुदेष्णा से वार्तालाप | द्रौपदी का रानी सुदेष्णा के यहाँ निवास पाना | सहदेव की विराट के यहाँ गौशाला में नियुक्ति | अर्जुन की विराट के यहाँ नृत्य प्रशिक्षक के पद पर नियुक्ति | नकुल का विराट के अश्वों की देखरेख में नियुक्त होना
समयपालन पर्व
भीमसेन द्वारा जीमूत नामक मल्ल का वध
कीचकवध पर्व
कीचक की द्रौपदी पर आसक्ति और प्रणय निवेदन | द्रौपदी द्वारा कीचक को फटकारना | सुदेष्णा का द्रौपदी को कीचक के यहाँ भेजना | कीचक द्वारा द्रौपदी का अपमान | द्रौपदी का भीमसेन के समीप जाना | द्रौपदी का भीमसेन से अपना दु:ख प्रकट करना | द्रौपदी का भीमसेन के सम्मुख विलाप | द्रौपदी का भीमसेन से अपना दु:ख निवेदन करना | भीमसेन और द्रौपदी का संवाद | भीमसेन और कीचक का युद्ध | भीमसेन द्वारा कीचक का वध | उपकीचकों का सैरन्ध्री को बाँधकर श्मशानभूमि में ले जाना | भीमसेन द्वारा उपकीचकों का वध | द्रौपदी का विराट नगर में लौटकर आना | द्रौपदी का बृहन्नला और सुदेष्णा से वार्तालाप
गोहरण पर्व
दुर्योधन को उसके गुप्तचरों द्वारा कीचकवध का वृत्तान्त सुनाना | दुर्योधन का सभासदों से पांडवों का पता लगाने हेतु परामर्श | द्रोणाचार्य की सम्मति | युधिष्ठिर की महिमा कहते हुए भीष्म की पांडव अन्वेषण के विषय में सम्मति | कृपाचार्य की सम्मति और दुर्योधन का निश्चय | सुशर्मा का कौरवों के लिए प्रस्ताव | त्रिगर्तों और कौरवों का मत्स्यदेश पर धावा | पांडवों सहित विराट की सेना का युद्ध हेतु प्रस्थान | मत्स्य तथा त्रिगर्त देश की सेनाओं का युद्ध | सुशर्मा द्वारा विराट को बन्दी बनाना | पांडवों द्वारा विराट को सुशर्मा से छुड़ाना | युधिष्ठिर का अनुग्रह करके सुशर्मा को मुक्त करना | विराट द्वारा पांडवों का सम्मान | विराट नगर में राजा विराट की विजय घोषणा | कौरवों द्वारा विराट की गौओं का अपहरण | गोपाध्यक्ष का उत्तरकुमार को युद्ध हेतु उत्साह दिलाना | उत्तर का अपने लिए सारथि ढूँढने का प्रस्ताव | द्रौपदी द्वारा उत्तर से बृहन्नला को सारथि बनाने का सुझाव | बृहन्नला के साथ उत्तरकुमार का रणभूमि को प्रस्थान | कौरव सेना को देखकर उत्तरकुमार का भय | अर्जुन का उत्तरकुमार को आश्वासन देकर रथ पर चढ़ाना | द्रोणाचार्य द्वारा अर्जुन के अलौकिक पराक्रम की प्रशंसा | अर्जुन का उत्तर को शमीवृक्ष से अस्त्र उतारने का आदेश | उत्तर का शमीवृक्ष से पांडवों के दिव्य धनुष आदि उतारना | उत्तर का बृहन्नला से पांडवों के अस्त्र-शस्त्र के विषय में प्रश्न करना | बृहन्नला द्वारा उत्तर को पांडवों के आयुधों का परिचय कराना | अर्जुन का उत्तरकुमार को अपना और अपने भाइयों का यथार्थ परिचय देना | अर्जुन द्वारा युद्ध की तैयारी तथा अस्त्र-शस्त्रों का स्मरण | अर्जुन द्वारा उत्तरकुमार के भय का निवारण | अर्जुन को ध्वज की प्राप्ति तथा उनके द्वारा शंखनाद | द्रोणाचार्य का कौरवों से उत्पात-सूचक अपशकुनों का वर्णन | दुर्योधन द्वारा युद्ध का निश्चय | कर्ण की उक्ति | कर्ण की आत्मप्रंशसापूर्ण अहंकारोक्ति | कृपाचार्य का कर्ण को फटकारना और युद्ध हेतु अपना विचार बताना | अश्वत्थामा के उद्गार | भीष्म द्वारा सेना में शान्ति और एकता बनाये रखने की चेष्टा | द्रोणाचार्य द्वारा दुर्योधन की रक्षा के प्रयत्न | पितामह भीष्म की सम्मति | अर्जुन का दुर्योधन की सेना पर आक्रमण और गौओं को लौटा लाना | अर्जुन का कर्ण पर आक्रमण और विकर्ण की पराजय | अर्जुन द्वारा शत्रुंतप और संग्रामजित का वध | कर्ण और अर्जुन का युद्ध तथा कर्ण का पलायन | अर्जुन द्वारा कौरव सेना का संहार | उत्तर का अर्जुन के रथ को कृपाचार्य के पास लेना | अर्जुन और कृपाचार्य का युद्ध देखने के लिए देवताओं का आगमन | कृपाचार्य और अर्जुन का युद्ध | कौरव सैनिकों द्वारा कृपाचार्य को युद्ध से हटा ले जाना | अर्जुन का द्रोणाचार्य के साथ युद्ध | द्रोणाचार्य का युद्ध से पलायन | अर्जुन का अश्वत्थामा के साथ युद्ध | अर्जुन और कर्ण का संवाद | कर्ण का अर्जुन से हारकर भागना | अर्जुन का उत्तरकुमार को आश्वासन | अर्जुन से दु:शासन आदि की पराजय | अर्जुन का सब योद्धाओं और महारथियों के साथ युद्ध | अर्जुन द्वारा कौरव सेना के महारथियों की पराजय | अर्जुन और भीष्म का अद्भुत युद्ध | अर्जुन के साथ युद्ध में भीष्म का मूर्च्छित होना | अर्जुन और दुर्योधन का युद्ध | दुर्योधन का विकर्ण आदि योद्धाओं सहित रणभूमि से भागना | अर्जुन द्वारा समस्त कौरव दल की पराजय | कौरवों का स्वदेश को प्रस्थान | अर्जुन का विजयी होकर उत्तरकुमार के साथ राजधानी को प्रस्थान | विराट की उत्तरकुमार के विषय में चिन्ता | उत्तरकुमार का नगर में प्रवेश और प्रजा द्वारा उनका स्वागत | विराट द्वारा युधिष्ठिर का तिरस्कार और क्षमा-प्रार्थना | विराट का उत्तरकुमार से युद्ध का समाचार पूछना | विराट और उत्तरकुमार की विजय के विषय में बातचीत | अर्जुन का विराट को महाराज युधिष्ठिर का परिचय देना | विराट को अन्य पांडवों का परिचय प्राप्त होना | विराट का युधिष्ठिर को राज्य समर्पण और अर्जुन-उत्तरा विवाह का प्रस्ताव | अर्जुन द्वारा उत्तरा को पुत्रवधू के रूप में ग्रहण करना | अभिमन्यु और उत्तरा का विवाह | विराट पर्व श्रवण की महिमा

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