श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
षष्ठ अध्याय
संकल्पों के त्याग के उपाय
‘योगारूढस्तदोच्यते’- सिद्धि-असिद्धि में सम रहने का नाम ‘योग’ है।[3] इस योग अर्थात समता पर आरूढ़ होना, स्थित होना ही योगारूढ़ होना है। योगारूढ़ होने पर परमात्मा की प्राप्ति हो जाती है। दूसरे श्लोक में भगवान ने यह कहा था कि संकल्पों का त्याग किए बिना कोई-सा भी योग सिद्ध नहीं होता और यहाँ कहा है कि संकल्पों का सर्वथा त्याग कर देने से वह योगारूढ़ हो जाता है। इससे सिद्ध होता है कि सभी तरह के योगों से योगारूढ़ अवस्था प्राप्त होती है। यद्यपि यहाँ कर्मयोग का ही प्रकरण है, पर संकल्पों का सर्वथा त्याग करने से योगारूढ़ अवस्था में सब एक हो जाते हैं।[4] संबंध- पूर्वश्लोक में भगवान ने योगारूढ़ मनुष्य के लक्षण बताते हुए ‘यदा’ और ‘तदा’ पद से योगारूढ़ होने में अर्थात अपना उद्धार करने में मनुष्य को स्वतंत्र बताया। अब आगे के श्लोक में भगवान मनुष्य मात्र को अपना उद्धार करने की प्रेरणा करते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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