श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
चतुर्दश अध्याय
गुणातीत मनुष्य की जो स्वतः सिद्ध निर्विकारता है, उसकी परिस्थितियों के आने-जाने का कुछ भी फरक नहीं पड़ता। उसकी निर्विकारता, समता ज्यों-की-त्यों अटल रहती है। उसकी शांति कभी भंग नहीं होती। [चौबीसवें और पचीसवें- इन दो श्लोकों में भगवान ने गुणातीत महापुरुष की समता का वर्णन किया है।] संबंध- अर्जुन ने तीसरे प्रश्न के रूप में गुणातीत होने का उपाय पूछा था। उसका उत्तर भगवान आगे के श्लोक में देते हैं। |
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