श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
एकादश अध्याय
त्वमादिदेवः पुरुषः पुराणस्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम् । अर्थ- आप ही आदिदेव और पुराणपुरुष हैं तथा आप ही इस संसार के परम आश्रय हैं। आप ही सबको जानने वाले, जानने योग्य और परमधाम हैं। हे अनन्तरूप! आपसे ही संपूर्ण संसार व्याप्त है। व्याख्या- ‘त्वमादिदेवः पुरुषः पुराणः’- आप संपूर्ण देवताओं के आदिदेव हैं; क्योंकि सबसे पहले आप ही प्रकट होते हैं। आप पुराण पुरुष हैं; क्योंकि आप सदा से और सदा ही रहने वाले हैं। ‘त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्’- देखने, सुनने, समझने और जानने में जो कुछ संसार आता है; और संसार की उत्पत्ति, स्थिति, प्रलय आदि जो कुछ होता है, उस सबके परम आधार आप हैं। ‘वेत्तासि’- आप संपूर्ण संसार को जानने वाले हैं अर्थात भूत, भविष्य और वर्तमान काल तथा देश, वस्तु, व्यक्ति आदि जो कुछ है, उन सबको जानने वाले (सर्वज्ञ) आप ही हैं। ‘वेद्यम्’- वेदों, शास्त्रों, संत-महात्माओं आदि के द्वारा जानने योग्य केवल आप ही हैं। ‘परं धाम’- जिसको मुक्ति, परमपद आदि नामों से कहते हैं, जिसमें जाकर फिर लौटकर नहीं आना पड़ता और जिसको प्राप्त करने पर करना, जानना और पाना कुछ भी बाकी नहीं रहता, ऐसे परमधाम आप हैं। ‘अनन्तरूप’- विराटरूप से प्रकट हुए आपके रूपों का कोई पारावार नहीं है। सब तरफ से ही आपके अनन्त रूप हैं। ‘त्वया ततं विश्वम्’- आपसे यह संपूर्ण संसार व्याप्त है अर्थात संसार के कण-कण में आप ही व्याप्त हो रहे हैं। |
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