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'''पुरोधसां च मुख्यं मां विद्धि पार्थ बृहस्पतिम् ।''' | '''पुरोधसां च मुख्यं मां विद्धि पार्थ बृहस्पतिम् ।''' | ||
'''सेनानीनामहं स्कन्द: सरसामस्मि सागर:।। 24 ।।''' | '''सेनानीनामहं स्कन्द: सरसामस्मि सागर:।। 24 ।।''' | ||
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− | <center>'''पुरोहितों में मुखिया बृहस्पति मुझको जान। हे पार्थ ! मैं सेनापतियों में स्कन्द और जलाशय में समुद्र हूँ।। 24 ।।'''</center> | + | |
− | '''प्रश्न'''- बृहस्पति को अपना स्वरूप बतलाने का क्या अभिप्राय है? | + | |
− | '''उत्तर'''- बृहस्पति<ref>ये महर्षि अंगिरा के बड़े ही प्रतापी पुत्र हैं। स्वारोचिष मन्वन्तर में बृहस्पति सप्तर्षियों में प्रधान थे (हरिवंश. 7। 12, मत्स्यपुराण 9। 8)। ये बड़े भारी विद्वान् हैं। वामन-अवतार में भगवान् ने सांगोपांग वेद, षट्शास्त्र, स्मृति, आगम आदि सब इन्हीं से सीखे थे (बृहद्धर्मपुराण, मध्य. 16। 69 से 73)। इन्हीं के पुत्र कच ने शुक्राचार्य के यहाँ रहकर संजीवनीविद्या सीखी थी। ये देवराज इन्द्र के पुरोहित का काम करते हैं। इन्होनें समय-समय पर इन्द्र को जो दिव्य उपदेश लिये हैं, उनका मनन करने से मनुष्य का कल्याण हो सकता है। महाभारत-शान्ति और अनुशासनपर्व में इनके उपदेशों की कथाएँ पढ़नी चाहिये।</ref> देवराज इन्द्र के गुरु, देवताओं के कुलपुरोहित और विद्या-बुद्धि में सर्वश्रेष्ठ हैं तथा संसार के समस्त पुरोहितों में मुख्य और आंगिरसों के राजा माने गये हैं। इसलिये भगवान् ने उनको अपना स्वरूप कहा है। | + | <center>'''पुरोहितों में मुखिया बृहस्पति मुझको जान। हे पार्थ! मैं सेनापतियों में स्कन्द और जलाशय में समुद्र हूँ।। 24 ।।'''</center> |
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− | '''उत्तर'''- स्कन्द का दूसरा नाम कार्तिकेय है। इनके छः मुख और बारह हाथ हैं। ये | + | |
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13:31, 24 अक्टूबर 2017 का अवतरण
श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
दशम अध्याय
पुरोधसां च मुख्यं मां विद्धि पार्थ बृहस्पतिम् ।
उत्तर- बृहस्पति[1] देवराज इन्द्र के गुरु, देवताओं के कुलपुरोहित और विद्या-बुद्धि में सर्वश्रेष्ठ हैं तथा संसार के समस्त पुरोहितों में मुख्य और आंगिरसों के राजा माने गये हैं। इसलिये भगवान् ने उनको अपना स्वरूप कहा है। प्रश्न- स्कन्द कौन हैं और सेनापतियों में इनको भगवान् ने अपना स्वरूप क्यों बतलाया? उत्तर- स्कन्द का दूसरा नाम कार्तिकेय है। इनके छः मुख और बारह हाथ हैं। ये महादेव जी के पुत्र[2] और देवताओं के सेनापति हैं। संसार के समस्त सेनापतियों में ये प्रधान हैं, इसीलिये भगवान् ने इनको अपना स्वरूप बतलाया है। प्रश्न- जलाशयों में समुद्र को अपना स्वरूप बतलाने का क्या भाव है? उत्तर- पृथ्वी में जितने भी जलाशय हैं, उन सबमें समुद्र[3] बड़ा और सबका राजा माना जाता है; अतः समुद्र की प्रधानता है। इसलिये समस्त जलाशयों में समुद्र को भगवान् ने अपना स्वरूप बतलाया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ये महर्षि अंगिरा के बड़े ही प्रतापी पुत्र हैं। स्वारोचिष मन्वन्तर में बृहस्पति सप्तर्षियों में प्रधान थे (हरिवंश. 7। 12, मत्स्यपुराण 9। 8)। ये बड़े भारी विद्वान् हैं। वामन-अवतार में भगवान् ने सांगोपांग वेद, षट्शास्त्र, स्मृति, आगम आदि सब इन्हीं से सीखे थे (बृहद्धर्मपुराण, मध्य. 16। 69 से 73)। इन्हीं के पुत्र कच ने शुक्राचार्य के यहाँ रहकर संजीवनीविद्या सीखी थी। ये देवराज इन्द्र के पुरोहित का काम करते हैं। इन्होनें समय-समय पर इन्द्र को जो दिव्य उपदेश लिये हैं, उनका मनन करने से मनुष्य का कल्याण हो सकता है। महाभारत-शान्ति और अनुशासनपर्व में इनके उपदेशों की कथाएँ पढ़नी चाहिये।
- ↑ कहीं-कहीं इन्हें अग्नि के तेज से तथा दक्षकन्या स्वाहा के द्वारा उत्पन्न माना गया है (महाभारत. वनपर्व 223)। इनके सम्बन्ध में महाभारत और पुराणों में बड़ी विचित्र-विचित्र कथाएँ मिलती हैं।
- ↑ ‘समुद्र’ से यहाँ ‘समष्टि समुद्र’ समझना चाहिये।
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