श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
दशम अध्याय
रुद्राणां शंकरश्चास्मि वित्तेशो यक्षरक्षसाम् ।
उत्तर- हर, बहुरूप, त्र्यम्बक, अपराजित, वृषाकपि, शम्भु, कपर्दी, रैवत, मृगव्याध, शर्व और कपाली[1]- ये ग्यारह रुद्र कहलाते हैं। इनमें शम्भु अर्थात् शंकर सबसे अधीश्वर (राजा) हैं, तथा कल्याणप्रदाता और कल्याणस्वरूप हैं। इसलिये उन्हें भगवान् ने अपना स्वरूप कहा है। प्रश्न- यक्ष राक्षसों में धनपति कुबेर को अपना स्वरूप बतलाने का क्या अभिप्राय है? उत्तर- कुबेर[2] यक्ष-राक्षसों के राजा तथा उनमें श्रेष्ठ हैं और धनाध्यक्ष के पद पर आरूढ़ प्रसिद्ध लोकपाल हैं, इसलिये भगवान् ने उनको अपना स्वरूप बतलाया है। प्रश्न- आठ वसु कौन-से हैं और उनमें पावक (अग्नि)-को अपना स्वरूप बतलाने का क्या अभिप्राय है? उत्तर- धर, ध्रुव, सोम, अहः, अनिल अनल, प्रत्यूष और प्रभास- इन आठों को वसु कहते हैं।[3] इनमें अनल (अग्नि) वसुओं के राजा हैं और देवताओं को हवि पहुँचाने वाले हैं। इसके अतिरिक्त वे भगवान् के मुख भी माने जाते हैं। इसीलिये अग्नि (पावक)- को भगवान् ने अपना स्वरूप बतलाया है। प्रश्न- शिखर वालों में मेरु मैं हूँ, इस कथन का क्या अभिप्राय है? उत्तर- सुमेरु पर्वत नक्षत्र और द्वीपों का केन्द्र तथा सुवर्ण और रत्नों का भण्डार माना जाता है; उसके शिखर अन्य पर्वतों की अपेक्षा ऊँचे हैं। इस प्रकार शिखर वाले पर्वतों में प्रधान होने से सुमेरु को भगवान् ने अपना स्वरूप बतलाया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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हरश्च बहुरूपश्च त्र्यम्बकश्चापराजितः। वृषाकपिश्च शम्भुश्च कपर्दी रैवतस्तथा।
मृगव्याधश्च शर्वश्च कपानी च विशाम्पते। एकादशैते कथिता रुद्रास्त्रिभुवनेश्वराः।। (हरिवंश. 1। 3। 51, 52) - ↑ ये पुलस्त्य ऋषि के पौत्र हैं और विश्रवा के औरस पुत्र हैं। भरद्वाज-कन्या देववर्णिनी के गर्भ से इनका जन्म हुआ था। इनके दीर्घकाल तक कठोर तप करने पर ब्रह्माजी ने प्रसन्न होकर इनसे वर माँगने को कहा। तब इन्होंने विश्व के धनरक्षक होने की इच्छा प्रकट की। इस पर ब्रह्माजी ने कहा कि ‘मैं भी चौथे लोकपाल की नियुक्ति करना चाहता हूँ; अतएव इन्द्र, यम और वरुण की भाँति तुम भी इस पद को ग्रहण करो।’ उन्होंने ही इनको पुष्पकविमान दिया। तबसे ये ही धनाध्यक्ष हैं। इनकी विमाता कैकसी से रावण-कुम्भकर्णादि का जन्म हुआ था (वाल्मीकि., उत्तरकाण्ड, स. 3)। नलकूबर और मणिग्रीव, जो नारद मुनि के शाप से जुड़े हुए अर्जुन के वृक्ष हो गये थे और जिनका भगवान् श्रीकृष्ण ने उद्धार किया था, कुबेर के ही पुत्र थे (श्रीमद्भागवत 10। 10)
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धरो ध्रुवश्च सोमश्च अहश्चैवानिलोऽनलः। प्रत्यूषश्च प्रभासश्च वसवोऽष्टौ प्रकीर्तिताः।। (महा., आदि. 66। 18)
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