महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
97.युधिष्ठिर की वेदना
कुंती की बात सुनकर युधिष्ठिर ने कहा- "मां! तुमने कर्ण के जन्म के रहस्य को छिपाये रखा। इस कारण हमें उसका असली परिचय न मिल सका। इसी कारण मुझे इतनी व्यथा हो रही है। यह सब तुम्हारे कारण ही हुआ। मैं शाप देता हूँ कि आज से स्त्रियां किसी भी रहस्य को गुप्त न रख सकेंगी।" यह कथा पौराणिकों की कल्पना मालूम होती है। प्रायः लोग समझते हैं कि स्त्रियां किसी भी रहस्य को हजम नहीं कर सकतीं। इसी लोकमत के आधार पर इस कहानी की सुंदर ढंग से कल्पना की गई है। किसी रहस्य को गुप्त रखने से दुनियादारी की दृष्टि से चाहे फायदा हो या नुकसान, पर धार्मिकता की दृष्टि से यह कोई इतना उत्तम गुण नहीं समझा जाता। अतः स्त्रियों को इस बात को कभी महसूस करने की कोई आवश्यकता नहीं। किसी बात को गुप्त रखने की शक्ति न होना धर्म के पथ पर रोड़ा नहीं बन सकता। सम्भव है कि स्वाभाविक प्रेम के कारण ही स्त्रियां किसी बात को गुप्त रखने में असमर्थ होती हों। लोकमत ऐसा होने पर भी, कितनी ही स्त्रियां ऐसी हैं जो रहस्यों को भली-भाँति गुप्त रख लिया करती हैं। यह भी नहीं कहा जा सकता कि सभी पुरुषों में बात पचाने की सामर्थ्य होती है। भिन्न-भिन्न अभ्यासों व वृत्तियों के कारण प्रायः लोगों में जो भिन्नताएं दिखाई देती हैं उन्हें स्त्रियोचित या पुरुषोचित कहकर विभक्त कर देना संसार का स्वभाव है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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