महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
7.विदुर
तीनों लोकों में महात्मा विदुर जैसा धर्मनिष्ठ या नीतिमान कोई नहीं था। जिस समय धृतराष्ट्र ने दुर्योधन को जुआ खेलने की अनुमति दी, विदुर ने धृतराष्ट्र से बहुत आग्रहपूर्वक निवेदन किया- "राजन, मुझे यह काम ठीक नहीं जंचता। इस खेल के कारण आपके बेटों में आपस में वैरभाव बढ़ेगा। इसको रोक दीजिये।" धृतराष्ट्र विदुर की बात से प्रभावित हुए और अपने बेटे दुर्योधन को अकेले में बुलाकर उसे इस कुचाल से रोकने का प्रयत्न किया। बड़े प्रेम के साथ वह बेटे से बोले- "गाँधारी के लाल! इस जुए के खेल को नीतिज्ञ विदुर ठीक नहीं समझता। इस कुविचार को तुम छोड़ दो। विदुर बड़ा बुद्धिमान है और हमेशा हमारा भला चाहता आया है। उसका कहा मानने में ही हमारी भलाई है। भूत तथा भविष्य की बातें जानने वाले बृहस्पति ने जितने शास्त्र ग्रन्थ रचे हैं, विदुर ने उन सबका ज्ञान प्राप्त किया है। यद्यपि विदुर मुझसे उम्र में छोटा है, फिर भी हमारे कुल का प्रधान वही समझा जाता है। वत्स! जुआ खेलने का विचार छोड़ दो। विदुर कहता है कि उससे विरोध बहुत बढ़ेगा और वह राज्य के नाश का कारण हो जायेगा। छोड़ दो इस विचार को।" इस तरह कई मीठी बातों से धृतराष्ट्र ने अपने बेटे को सही रास्ते पर लाने का प्रयत्न किया; किन्तु दुर्योधन न माना। बूढ़े धृतराष्ट्र अपने बेटे से बहुत प्यार करते थे। अपनी कमज़ोरी के कारण उसका अनुरोध वह टाल न सके और युधिष्ठिर को जुआ खेलने का न्यौता भेजना ही पड़ा। धृतराष्ट्र पर बस न चला तो विदुर युधिष्ठिर के पास गये। उनको जुआ खेलने को जाने से रोकने का प्रयत्न किया। इस खेल की बुराइयाँ उनको बताई। युधिष्ठिर ने विदुर की सब बातें ध्यानपूर्वक सुनीं और बड़े आदर के साथ बोले- "चाचा जी! मैं यह सब मानता हूँ, पर जब काका धृतराष्ट्र बुलावें तो मैं कैसे इन्कार करूँ? युद्ध या खेल के लिए बुलाये जाने पर न जाना क्षत्रिय का धर्म तो नहीं है।" यह कहकर युधिष्ठिर क्षत्रिय कुल की मर्यादा रखने के लिए जुआ खेलने गये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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