महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
82.सिंधुराज
सवेरा हुआ। शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ आचार्य द्रोण ने सेना की व्यवस्था करने में ध्यान दिया। युद्ध के मैदान से बाहर मील की दूर पर जयद्रथ को अपनी सेना एवं रक्षकों के साथ रखा गया। उसकी रक्षा के लिये भूरिश्रवा, कर्ण, अश्वत्थामा, शल्य, वृषसेन आदि महारथी अपनी सेनाओं के साथ सुसज्जित तैयार थे। इन वीरों की सेना और पांडवों की सेना के बीच में आचार्य द्रोण ने एक भारी सेना को शकट चक्रव्यूह में रचा। शकट-व्यूह के अंदर कुछ दूर आगे पद्मव्यूह बनाया। उससे आगे एक सूची-मुख-व्यूह रचा। इसी सूची-मुख-व्यूह के बीच में जयद्रथ को सुरक्षित रूप से रखा गया। शकट-व्यूह के द्वार पर द्रोणाचार्य रथ पर खड़े थे। उन्होंने सफेद वस्त्र धारण किये थे। उनका कवच भी सफेद रंग का था और माथे पर उन्होंने सफेद शिरस्त्राण पहन रखा था। इस शुभ्र वेश में द्रोणाचार्य अपूर्व तेज के साथ प्रकाशमान हुए। उनके रथ मे भूरे रंग के घोड़े जुते थे। रथ पर जो ध्वजा फहरा रही थी उसमें वेदी का चित्र अंकित था और मृग-छाला लगी हुई थी। हवा में उस ध्वजा को फहराते देखकर कौरवों का जोश बढ़ने लगा। व्यूह की मजबूती को देखकर दुर्योधन को धीरज बंधा। धृतराष्ट्र के पुत्र दुर्मर्षण ने कौरव सेना के आगे अपनी सेना खड़ी कर दी। उस सेना में एक हजार रथ, एक सौ हाथी, तीन हजार घोड़े, दस हजार पैदल और डेढ़ हजार धनुर्धारी वीर सुव्यवस्थित रूप से खड़े थे। अपनी इस सेना के आगे रथ पर खड़े दुर्मर्षण ने शंख बजाया ओर पांडवों को युद्ध के लिये ललकारा- "कहां है वह अर्जुन जिसके बारे में लोगों ने उड़ा दिया कि वह युद्ध में हराया नहीं जा सकता? कहाँ है वह? आये तो सामने। अभी संसार देखता है कि वह वीर हमारी सेना से टकराकर उसी तरह टूट जाता है, जैसे पत्थरों से टकराकर मिट्टी का घड़ा।" अर्जुन ने यह सुना और दुर्मर्षण की ओर अपनी सेना के बीच अपना रथ खड़ा कर दिया और शंख बजाया, जिसका अर्थ था कि उसने चुनौती स्वीकार कर ली है। उसके जवाब में कौरव सेना में भी कई शंख बजने लगे। "केशव! जरा उधर रथ चलाइए जहाँ दुर्मर्षण की सेना है। उधर जो गज-सेना है उसको तोड़ते हुए अंदर घुसेंगे।" अर्जुन ने कहा। दुर्मर्षण की सेना को अर्जुन ने तितर-बितर कर दिया। सेना उसी प्रकार इधर-उधर बिखर गई जैसे तेज हवा के चलने से बादल बिखर जाते हैं। यह देख दु:शासन बड़ा क्रुद्ध हुआ और एक भारी गज-सेना लेकर उसने अर्जुन को घेर लिया। दु:शासन बड़ा ही पराक्रमी था। अर्जुन और दु:शासन में भयानक लड़ाई छिड़ गई। अर्जुन के बाणों से गिरे वीरों की लाशों से सारा युद्ध-क्षेत्र पट गया। बड़ा वीभत्स दृश्य था। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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