महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
78.शूर भगदत्त
अपने अनुपम वीर भाइयों के मारे जाने पर शकुनि के क्रोध और क्षोभ की सीमा न रही। उसने माया-युद्ध शुरू कर दिया और उन सब उपायों से काम लिया जिनमें उसे कुशलता प्राप्त थी। परंतु अर्जुन ने उसके एक-एक अस्त्र को अपने जवाबी अस्त्रों से काट डाला और उसकी माया का प्रभाव दूर कर दिया। अंत में अर्जुन के बाणों से शकुनि ऐसा आहत हुआ कि उसे युद्ध-क्षेत्र से हट जाना पड़ा। इसके बाद तो पांडवों की सेना द्रोणाचार्य की सेना पर टूट पड़ी। असंख्य वीर खेत रहे। खून की नदियां बह चलीं। थोड़ी देर बाद सूर्य अस्त हुआ। द्रोण ने देखा कि उनकी सेना बुरी तरह मात खा रही है। कितने ही सैनिक घायल हो गये हैं, कितने ही वीरों के कवच टूट गये हैं। लोगों में लड़ने का साहस नहीं रहा है। हालत यहाँ तक हो गई है कि किसी-किसी की बुद्धि भी ठिकाने नहीं रही। अपनी सेना का यह हाल देखकर द्रोणाचार्य ने लड़ाई बंद कर दी। दोनों पक्षों की सेनाएं अपने-अपने डेरों को चल दीं और इस प्रकार बारहवें दिन का युद्ध समाप्त हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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