महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
5.देवयानी का विवाह
देवयानी को एक दिन पता चल ही गया कि शर्मिष्ठा उसकी सौत बनी हुई है। यह जानकर वह मारे क्रोध के आपे से बाहर हो गई, रोती-पीटती अपने पिता के पास दौड़ी गई और शिकायत की कि राजा ययाति ने वचन भंग किया है और शर्मिष्ठा को उसने अपनी पत्नी बना लिया है। यह सुनकर शुक्राचार्य को बड़ा क्रोध आया। उन्होंने शाप दिया कि राजा ययाति इसी घड़ी बूढ़े हो जायें। उनका शाप देना था कि ययाति को बुढ़ापे ने आ घेरा। वह अभी अधेड़ उम्र के ही थे। जवानी उनकी बीत नहीं चुकी थी और बुढ़ापा आ गया। वह शुक्राचार्य के पास दौड़े गये, उनसे क्षमा माँगी और शाप मुक्ति के लिये बहुत अनुनय विनय की। शुक्राचार्य को उनके हाल पर दया आई। सोचा, आखिर मेरी कन्या को इसी ने कुएँ से निकालकर बचाया था। वह सान्त्वनापूर्ण स्वर में बोले- "राजन! तुम शाप-वश बूढ़े हो गए हो। इसका निवारण तो मेरे पास है नहीं, पर एक बात है- अगर कोई पुरुष अपनी जवानी तुम्हें दे दे और तुम्हारा बुढ़ापा अपने ऊपर ले ले तो तुम फिर से जवान बन सकते हो।" यह युक्ति बताकर शुक्राचार्य ने बूढ़े ययाति को आशीर्वाद देकर विदा किया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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