महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
41.मायावी सरोवर
अभिमानी अर्जुन यह सुनकर गुस्से से भर गया। धनुष तानकर ललकारा- "कौन हो तुम? सामने आकर कहो, नहीं तो यह लो। इन्हीं बाणों से तुम्हारे प्राण पखेरु उड़ा देता हूँ।" बात खत्म भी न होने पाई थी कि अर्जुन ने शब्द भेदी बाण छोड़ने शुरु कर दिए। जिधर से आवाज सुनाई दी उसी ओर निशाना लगाकर वह तीर चलाता रहा, किन्तु उन बाणों का कोई भी असर नहीं हुआ। जरा देर में फिर से आवाज आई- "तुम्हारे बाण मुझे छू तक नहीं सकते। मैं फिर कहे देता हूं, मेरे प्रश्नों का पहले उत्तर दो और फिर पानी पियो, नहीं तो तुम्हारी मृत्यु निश्चित है।" अपने बाणों को बेकार होते देखकर अर्जुन के क्रोध की सीमा न रही। उसने सोचा कि यहाँ तो बड़ी जबदरस्त लड़ाई लड़नी होगी। इससे पहले अपनी प्यास तो बुझा ही लूं। फिर लड़ लिया जायेगा। यह सोचकर अर्जुन ने जलाशय में उतरकर पानी पी लिया और किनारे आते आते चारों खाने चित्त होकर गिर पड़ा। उधर तीनों भाइयों के बाट जोहते-जोहते युधिष्ठिर बड़े व्याकुल हो उठे। भीमसेन से चिन्तित स्वर में बोले- “भैया भीमसेन! देखो तो अर्जुन भी नहीं लौटा। जरा तुम्हीं जाकर तलाश करो कि तीनों भाइयों को क्या हो गया है। लौटती बार पानी भी भर लाना। प्यास सही नहीं जा रही है। समय हमारे विपरीत ही मालूम होता है। जरा होशियारी से जाना भाई! तुम्हारा कल्याण हो।" युधिष्ठिर की आज्ञा मानकर भीमसेन तेजी से जलाशय की ओर बढ़ा। तालाब के किनारे पर देखा कि तीनों भाई मरे से पड़े हैं। देखकर भीमसेन का कलेजा टूक-टूक होने लगा। सोचा, यह किसी यक्ष की करतूत मालूम होती है। जरा पानी पी लूं फिर देखता हूँ कि कौन ऐसी बली है जो मेरे रास्ते में आये। यह सोचकर भीमसेन तालाब में उतरना ही चाहता था कि आवाज आई- "भीमसेन! प्रश्नों का उत्तर दिये बिना पानी पीने का साहस न करो। यदि मेरी बात न मानोगे तो तुम्हारी भी अपने भाइयों जैसी गति होगी।" "मुझे रोकने वाला तू कौन है?" कहता हुआ भीमसेन बेधड़क तालाब में उतर गया और पानी भी पी लिया। पानी पीते ही और भाइयों की तरह वह भी वहीं ढेर हो गया। उधर युधिष्ठिर अकेले बैठे घबराने लगे। बड़े आश्चर्य की बात है कि कोई भी अब तक नहीं लौटा! कभी ऐसी बात हुई नहीं आखिर भाइयों को हो क्या गया? क्या कारण है कि अभी तक ये लौटे नहीं? कहीं किसी ने उन्हें शाप तो नहीं दे दिया? या जल की खोज में जंगल में इधर उधर भटक तो नहीं गये? मैं ही चलकर देखूं कि क्या बात है? मन ही मन में यह निश्चय करके युधिष्ठिर भाइयों को खोजते हुए जलाशय की ओर चल पड़े। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
अध्याय | अध्याय का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज