श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी170. श्री अद्वैताचार्य जी की पहेली
महाप्रभु जब बाह्य दशा में आये, तब उन्होंने सभी भक्तों के कुशल-समाचार पूछे। जगदानन्द जी सबका कुशल-क्षेम बताकर अन्त में अद्वैताचार्य की वह पहेलीवाली पत्री दी। प्रभु की आज्ञा से वे सुनाने लगे। प्रभु को कोटि-कोटि प्रणाम कर लेने के अनन्तर उसमें यह पहेली थी– बाउलके कहिह-लोक हइल बाउल। सभी समीप में बैठे हुए भक्त इस विचित्र पहेली को सुनकर हँसने लगे। महाप्रभु मन ही मन इसका मर्म समझकर कुछ मन्द-मन्द मुसकाये और जैसी उनकी आज्ञा, इतना कहकर चुप हो गये। प्रभु के बाहरी प्राण श्रीस्वरूप गोस्वामी को प्रभु की मुसकराहट में कुछ विचित्रता प्रतीत हुई। इसलिये दीनता के साथ पूछने लगे– ‘प्रभो ! मैं इस विचित्र पहेली का अर्थ समझना चाहता हूँ। आचार्य अद्वैत राय ने यह कैसी अनोखी पहेली भेजी है। आप इस प्रकार इसे सुनकर क्यों मुसकराये?’ प्रभु ने धीरे-धीरे गम्भीरता के स्वर में कहा– अद्वैताचार्य कोई साधारण आचार्य तो हैं ही नहीं। वे नाम के ही आचार्य नहीं हैं, किन्तु आचार्यपने के सभी कार्य भली-भाँति जानते हैं। उन्हें शास्त्रीय विधि के अनुसार पूजा-पाठ करने की सभी विधि मालूम है। पूजा में पहले तो बडे सत्कार के साथ देवताओं को बुलाया जाता है, फिर उनकी षोडशोपचार रीति से विधिवत् पूजा की जाती है, यथास्थान पधराया जाता है, तब देवताओं से हाथ जोड़कर कहते है– ‘गच्छ-गच्छ परं स्थानम्’ अर्थात ‘अब अपने परम स्थान को पधारिये।’ सम्भवतया यही उनका अभिप्राय हो, वे ज्ञानी पण्डित हैं, उनके अर्थ को ठीक-ठीक समझ ही कौन सकता है। इस बात को सुनकर स्वरूप गोस्वामी कुछ अन्यमनस्क से हो गये। सभी को पता चल गया कि महाप्रभु अब शीघ्र ही लीला-संवरण करेंगे। इस बात के स्मरण से सभी का हृदय फटने-सा लगा। उसी दिन से प्रभु की उन्मादावस्था और भी अधिक बढ़ गयी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्रीचैतन्य प्राणियों के जीवन के आधार चावलरूपी हरिनाम के व्यापारी हैं। अद्वैताचार्य उनके प्रधान आढ़तिया हैं। जैसे ही पागल व्यापारी है वैसा ही पागल आढ़तिया भी है और पागलों का सा ही प्रलापपूर्ण पत्र भी पठाया है। पागलों के सिवा इसके इसके मर्म को कोई समझ ही क्या सकता है। पागल आढ़तिया कहता है– उस बावले व्यापारी से कहना। सब लोगों के कोठी-कुठिला हरिनामरूपी चावलों से भर गये। अब इस बाजार में इस सस्ते माल की बिक्री नहीं रही। अब यह व्यापार साधारण हो गया। तुम-जैसे उत्तम श्रेणी के व्यापारी के योग्य अब यह व्यापार नहीं है। इसलिये अब इस हाट को बन्द कर दो। बावले व्यापारी को बावले आढतिया ने यह सन्देश भिजवाया है।’