श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी142. श्री सनातन को शास्त्रीय शिक्षा
सनातन- 'प्रभो! मैं यही तो पूछ रहा हूँ, मायापति की शरण में कैसे जाया जाय?' प्रभु ने कहा- 'भाई! इसमें तो कृपा ही मुख्य मानी गयी है- (1) शास्त्रकृपा, (2) गुरुकृपा और (3) परमात्माकृपा- ये तीन ही मुख्य कृपा हैं। इन तीनों में से किसी की भी कृपा होने से मनुष्य के संसारी बन्धन ढीले हो सकते हैं और वह प्रभु की ओर अग्रसर हो सकता है।' सनातन- 'प्रभो! मैं यह जानना चाहता हूँ, यह जीव प्रभु से विमुख होकर क्यों नाना योनियों में भटकता फिरता है? पृथ्वी पर तो दुःख-ही-दुःख है। स्वर्गादि लोको में तो सुख भी होगा, किन्तु वहाँ भी जीव को शान्ति नहीं, इसकी अन्तिम शान्ति कहाँ जाकर होती हैं?' प्रभु ने कहा- 'सनातन! चींटी के लेकर ब्रह्मापर्यन्त सभी जीव माया के गुणों से आबद्ध हैं। स्वर्ग क्या, ब्रह्मलोक तक शान्ति नहीं, परम शान्ति तो प्रभु के पादपद्मों में पहुँचने पर ही प्राप्त हो सकती है।' सनातन- 'प्रभो! ब्रह्मा जी को तो शान्ति होगी, वे तो चराचर जगत के ईश्वर हैं, उनके लिये क्या दुःख! ये तो सम्पूर्ण जगत को उत्पन्न करते हैं।' प्रभु ने हंसकर कहा- 'सनातन! ईश्वर तो वे ही एक श्रीकृष्ण हैं। न जाने कितने असंख्य ब्रह्मा इस विश्व में प्रतिक्षण उत्पन्न होते हैं और नष्ट हो जाते हैं।' आश्चर्य के साथ सनातन जी ने कहा- 'प्रभो! यह आपने कैसी बात कही? सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के ईश्वर ब्रह्मा जी तो अकेले ही हैं। ब्रह्मा असंख्यों हैं, यह बात मेरी समझ में नहीं आयी इसे समझने की मेरी इच्छा है।' प्रभु ने बड़े ही स्नेह से कहा- 'अच्छा, तुम यों समझो। जिस काशीपुरी में तुम बैठे हो ऐसी पुण्य और पानाशिनी सात पुरी इस भारत वर्ष में हैं। और लाखों नगर हैं, ऐसे-ऐसे नौ खण्डों वाला यह जम्बूद्वीप' है; उन खण्डों के नाम-(1) भारतवर्ष, (2) किन्नरवर्ष, (3) हरिवर्ष, (4) कुरुवर्ष, (5) हिरण्मयवर्ष, (6) रम्यकवर्ष, (7) इलावृतवर्ष, (8) भद्राश्ववर्ष और (9) केतुमालवर्ष- ये हैं। इन खण्डों वाले द्वीप को ही जम्बूद्वीप कहते हैं। जम्बूद्वीप से दुगुना प्लक्षद्वीप है, प्लक्षद्वीप से दुगुना शाल्मलीद्वीप और उसे दुगुना कुशद्वीप है, कुशद्वीप से दुगुना क्रौंचद्वीप, क्रौंचद्वीप से दुगुना शाकद्वीप और शाकद्वीप से दुगुना पुष्करद्वीप है। इस प्रकार पृथ्वी पर सात द्वीप और सात समुद्र हैं। कलियुग वाले पुरुष पूरे जम्बूद्वीप को ही समझने में समर्थ नहीं हो सकते। वे क्षीरसागर का ही पार नहीं पाते फिर दधि, घृत, मधु सागर को तो समझ ही क्या सकते हैं। एक-एक द्वीप के बाद एक-एक समुद्र है। जम्बूद्वीप सबसे छोटा द्वीप है। |