श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी132. रघुनाथदास जी को प्रभु के दर्शन
पिता ने जब देखा कि पुत्र का चित्त संसारी कामों में नहीं लगता तब उन्होंने एक बहुत ही सुन्दरी कन्या से इन का विवाह कर दिया। गोवर्धनदास धनी थे, राजा और प्रजा दोनों के प्रीति-भाजन थे, सभी लोग उन्हें प्रतिष्ठा की दृष्टि से देखते थे। राजाओं के समान उनका वैभव था। इसलिये उन्हें अपने पुत्र के लिये सुन्दर- से-सुन्दर पत्नी खोजने में कठिनता नहीं हुई। उकना ख्याल था कि रघुनाथ की युवा अवस्था है, वह परम सुन्दरी पत्नी पाकर अपनी सारी उदासीनता को भूल जायगा और उस के प्रेमपाश में बँधकर संसारी हो जायगा, किन्तु विषय-भोगों को ही सर्वस्व समझने वाले पिता को क्या पता था कि इस की शादी तो किसी दूसरे के साथ पहले ही हो चुकी है, उसके सौन्दर्य के सामने इन संसारी सुन्दरियों को सौन्दर्य तुच्छातितुच्छ है। पिता का यह भी प्रयत्न विफल ही हुआ। परम सुन्दरी पत्नी रघुनाथदास को अपने प्रेमपाश में नहीं फंसा सकी। रघुनाथदास उसी प्रकार संसार से उदासीन ही बने रहे। अब जब रघुनाथदास जी ने सुना कि प्रभु वृन्दावन नहीं जा सके हैं, वे राम केलि से लौटकर अद्वैताचार्य के घर ठहरे हुए हैं; तब तो इन्होंने बड़ी ही नम्रता के साथ अपने पूज्य पिता के चरणों में प्रार्थना की कि मुझे महाप्रभु के दर्शनों की आज्ञा मिलनी चाहिये। महाप्रभु के दर्शन कर के मैं शीघ्र ही लौट आऊंगा। इस बात को सुनते ही गोवर्धनदास किंकर्तव्यविमूढ़ हो गये, किन्तु वे अपने बराबर के युवक पुत्र को जबरदस्ती रोकना भी नहीं चाहते थे, इसलिये आँखों में आंसू भरकर उन्होंने कहा- 'बेटा! हमारे कुल का तू ही एकमात्र दीपक है। हम सभी लोगों को एकमात्र तेरा ही सहारा है। तू ही हमारे जीवन का आधार है। तुझे देखे बिना हम जीवित नहीं रह सकते। मैं महाप्रभु के दर्शनों से तुझे रोकना नहीं चाहता, किन्तु इस बूढ़े की यही प्रार्थना है कि तू मेरे इन सफेद बालों की ओर देखकर जल्दी से लौट आना, कहीं घर छोड़कर बाहर जाने का निश्चय मत करना। |