श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी119. महाराज प्रतापरुद्र को प्रेमदान
उसी समय जाकर महाराज ने वाणीनाथ के हाथों बलगण्डिका भगवान का बहुत-सा प्रसाद प्रभु के समीप भिजवा दिया। प्रसाद से सैकड़ों वस्तुएँ थी। पचासों प्रकार के छोटे-बड़े अलग-अलग जाति के आम थे; केला, सन्तरा, नारियल, नारंगी तथा और भी भाँति-भाँति के फल थे। किसमिस, बादाम, अखरोट, अञ्जीर, काजू, छुहारे, पिस्ता, चिरौंजी, दाख, मखाने तथा और भी पचासों प्रकार के मेवा थे। भाँति-भाँति की मिठाइयाँ थीं। अनेक प्रकार के पेय पदार्थ थे। उन नाना भाँति के पदार्थों से वह वाटिका भवन भर गया। भगवान के ऐसे प्रसाद को देखकर प्रभु को परम प्रसन्नता हुई। वे अपने हाथों से ही भक्तों को प्रसाद वितरण करने लगे। एक-एक भक्त को दस-दस, बीस बीस दोने देते तो भी सब चीजें थोड़ी-थोड़ी उनमें नहीं जातीं। थोड़ी उनमें नहीं आतीं। महाप्रभु भक्तों को संकीर्तन से थका हुआ समझकर यथेष्ट प्रसाद दे रहे थे। सभी को प्रसाद वितरण करके प्रभु ने उसे पाने की आज्ञा दी; किन्तु प्रभु के पहले प्रसाद को पा ही कौन सकता था, इसलिये प्रभु अपने मुख्य-मुख्य भक्तों को साथ लेकर प्रसाद पाने बैठ गये। सभी ने खूब डटकर प्रसाद पाया। महाप्रभु आग्रहपूर्वक उन सबको खिला रहे थे। भक्तों से जो प्रसाद बचा वह अभ्यागतों को बाँट दिया गया। प्रसाद पा पाने लेने का अनन्तर सभी भक्त विश्राम करने लगे। इतने में ही रथ के चलने का समय आ पहुँचा। महाराज ने रथ को चलाने की आज्ञा दी। लाखों आदमी एक साथ मिलकर रथ को खींचने लगे, किन्तु रथ टस से मस नहीं हुआ, तब तो महाराज बड़े ही चिन्तित हुए। इतनें में ही महाप्रभु अपने भक्तों के साथ रथ के सीमप पहुँच गये। महाप्रभु ने ‘हरि, हरि’ शब्द करते हुए जोरों के साथ रथ में धक्का दिया और रथ उसी समय घर घर शब्द करता हुआ जोरों से चलने लगा। सभी को बड़ी भारी प्रसन्नता हुई। गौड़ीय भक्त ‘जगन्नाथ जी की जय’, ‘गौरचन्द्र की जय’, ‘श्रीकृष्णचैतन्य की जय’ आदि जय जयकारों से आकाश गुँजाने लगे। इस प्रकार बात-की-बात में रथ गुण्टिचा भवन के समीप पहुँच गया। वहाँ जाकर भगवान को मन्दिर में पधराया गया। भगवान के पुजारियों ने जगन्नाथ जी की आरती आदि की। महाप्रभु ने मन्दिर के सामने ही कीर्तन आरम्भ कर दिया। बड़ी देर तक संकीर्तन होता रहा। फिर महाप्रभु सभी भक्तों के सहित भगवान की सन्ध्याकालीन भोग आरती में सम्मिलित हुए। सभी ने भगवान की वन्दना और स्तुति की। तदनन्तर भक्तों के सहित महाप्रभु ने गुण्टिचा उद्यान मन्दिर के समीप आई टोटा नामक एक बाग में रात्रिभर निवास किया। गुण्टिचा मन्दिर में नौ दिनों तक उत्सव होता है। महाप्रभु भी तब तक भक्तों के सहित यहीं रहे। |