श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी115. भक्तों के साथ महाप्रभु की भेंट
महाप्रभु ने कीर्तन करते करते ही भक्तों के सहित मन्दिर की प्रदक्षिणा की और फिर शाम को आकर भगवान की पुष्पांजलि के दर्शन किये। सभी भक्त एक स्वर में भगवान के स्तोत्रों का पाठ करने लगे। पुजारी ने सभी भक्तों को प्रसादी-माला, चन्दन तथा प्रसादान्न दिया। भगवान की प्रसादी पाकर प्रभु भक्तों के सहित अपने स्थान पर आये। काशी मिश्र ने सायंकाल के प्रसाद का पहले से ही प्रबन्ध कर रखा था, इसलिये प्रभु ने सभी भक्तों को साथ लेकर प्रसाद पाया और फिर सभी भक्त प्रभु की अनुमति लेकर अपने अपने ठहरने के स्थान में सोने के लिये चले गये। इस प्रकार गौड़ीय भक्त जितने दिनों तक पुरी में रहे, महाप्रभु इसी प्रकार सदा उनके साथ आनन्द-विहार और कथा-कीर्तन करते रहे। |